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देवता: अग्निः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

मा नो॑ अग्ने॒ऽवीर॑ते॒ परा॑ दा दु॒र्वास॒सेऽम॑तये॒ मा नो॑ अ॒स्यै। मा नः॑ क्षु॒धे मा र॒क्षस॑ ऋतावो॒ मा नो॒ दमे॒ मा वन॒ आ जु॑हूर्थाः ॥१९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no agne vīrate parā dā durvāsase mataye mā no asyai | mā naḥ kṣudhe mā rakṣasa ṛtāvo mā no dame mā vana ā juhūrthāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒वीर॑ते। परा॑। दा। दुः॒ऽवास॑से। अम॑तये। मा। नः॒। अ॒स्यै। मा। नः॒। क्षु॒धे। मा। र॒क्षसे॑। ऋ॒त॒ऽवः॒। मा। नः॒। दमे॑। मा। वने॑। आ। जु॒हू॒र्थाः॒ ॥१९॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:1» मन्त्र:19 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी ! आप (अवीरते) वीरतारहित सेना में (नः) हमको (मा, परा, दाः) पराङ्मुख मत कीजिये (दुर्वाससे) बुरे वस्त्र धारण करने के लिये तथा (अमतये) मूर्खपन के लिये (नः) हमको (मा) मत नियुक्त कीजिये। (नः) हमको (अस्यै) इस प्यास के लिये (मा) मत वा (क्षुधे) भूख के लिये (मा) मत नियुक्त कीजिये। हे (ऋतावः) सत्य के प्रकाशक ! (रक्षसे) दुष्ट जन के लिये (दमे) घर में (नः) हमको (मा) मत पीड़ा दीजिये (वने) वन में हम को (मा) मत (आ, जुहूर्थाः) पीड़ा दीजिये ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! तुम लोग हमारी कातरता, दरिद्रता, मूढ़ता, क्षुधा, तृषा, दुष्टों के सङ्ग और घर वा जङ्गल में पीड़ा का निवारण कर सुखी करो ॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दुर्गति से दूर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = परमात्मन्! (न:) = हमें (अवीरते) = अपुत्रत्व के लिये (मा परादा:) = मत दे डालिये, हम निःसन्तान न हों। (दुर्वाससे) = मैले कुचैले कपड़ों के लिये मत दे डालिये। (नः) = हमें (अस्यै) = इस अमतये [ want] = निर्धनता व दुर्बुद्धि के लिये [ evil mindedness] मत दे डालिये। [२] (नः) = हमें (क्षुधे) = भूख के लिये मा मत दे डालिये और (रक्षसे) = राक्षसीभावों के लिये (मा) = मत दे डालिये। हे (ऋतावः) = ऋतवाले अग्ने, सत्य का रक्षण करनेवाले अग्ने ! (नः) = हमें (मा दमे) = न तो घर में और (मा वने) = न ही वन में (आजुहूर्था:) = हिंसित करिये। आप का उपासन करते हुए हम सर्वत्र सुरक्षित न रहें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम उत्तम सन्तान, शुभ वस्त्र, शुभ बुद्धि, तृप्ति व दिव्यभावों को प्राप्त करें। प्रभु हमारे में ऋत का रक्षण करें। क्या तो घर में और क्या वन में हम सर्वत्र सुरक्षित रहें।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वमवीरते नो मा परा दाः। दुर्वाससेऽमतये नो मा परा दाः नोऽस्यै मा क्षुधे मा नियुङ्क्ष्व। हे ऋतावो ! रक्षसे दमे नो मा पीड वने नो मा आ जुहूर्थाः ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अग्ने) पावक इव विद्वन् (अवीरते) न विद्यन्ते वीरा यस्मिन् सैन्ये तस्मिन् (परा) (दाः) पराङ्मुखान् कुर्याः (दुर्वाससे) दुष्टवस्त्रधारणाय (अमतये) मूढत्वाय (मा) (नः) अस्मान् (अस्यै) पिपासायै (मा) (नः) अस्मान् (क्षुधे) बुभुक्षायै (मा) (रक्षसे) दुष्टाय जनाय (ऋतावः) सत्यप्रकाशक (मा) (नः) अस्मान् (दमे) गृहे (मा) (वने) अरण्ये (आ) (जुहूर्थाः) प्रदद्याः ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यूयमस्माकं कातरतां दारिद्र्यं मूढतां क्षुधं तृषां दुष्टसङ्गं गृहे जङ्गले वा पीडां निवार्य सुखिनः सम्पादयत ॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, refulgent lord and ruler of life, give us not up to a state of cowardice and impotence. Reduce us not to a state of rags and destitution. Subject us not to such indigence and intellectual imbecility. Reduce us not to hunger. Throw us not to the evil and the wicked. O lord observer and protector of truth and law, lead us not astray in the home and in the forest.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! तुम्ही आमची कातरता, दारिद्र्य, मूढता, क्षुधा, तृषा, दुष्टांचा संग किंवा वनातील त्रास याचे निवारण करा व सुखी करा. ॥ १९ ॥