पृ॒क्षस्य॒ वृष्णो॑ अरु॒षस्य॒ नू सहः॒ प्र नु वो॑चं वि॒दथा॑ जा॒तवे॑दसः। वै॒श्वा॒न॒राय॑ म॒तिर्नव्य॑सी॒ शुचिः॒ सोम॑इव पवते॒ चारु॑र॒ग्नये॑ ॥१॥
pṛkṣasya vṛṣṇo aruṣasya nū sahaḥ pra nu vocaṁ vidathā jātavedasaḥ | vaiśvānarāya matir navyasī śuciḥ soma iva pavate cārur agnaye ||
पृ॒क्षस्य॑। वृष्णः॑। अ॒रु॒षस्य॑। नु। सहः॑। प्र। नु। वो॒च॒म्। वि॒दथा॑। जा॒तऽवे॑दसः। वै॒श्वा॒न॒राय॑। म॒तिः। नव्य॑सी। शुचिः॑। सोमः॑ऽइव। प॒व॒ते॒। चारुः॑। अ॒ग्नये॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सात ऋचावाले आठवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब मनुष्यों को क्या जान कर क्या उपदेश करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
प्रभु-स्तवन व सुन्दर जीवन
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यैः किं विज्ञाय किमुपदेष्टव्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! यस्य पृक्षस्यारुषस्य वृष्णो जातवेदसः सहो नू प्र वोचं विदथा नु प्रवोचं यस्य सोमइव नव्यसी शुचिश्चारुर्मतिः पवते तस्मै वैश्वानरायाऽग्नये प्रज्ञां धरेयम् ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men know and what should they preach are told.
O men! I will tell aloud (proclaim. Ed.) the might of the fire which is connected with all, is sprinkler of happiness, non-violent (useful) and present (existent. Ed.) in all things. Let me also proclaim its science. Let me uphold the intellect of that great illuminator of the whole world, whose most modern intellect is pure like the Soma (moon-creeper) and beautiful.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्या व विनयाने प्रकाशित विद्वान, सूर्य व राजा इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
