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शु॒क्रं ते॑ अ॒न्यद्य॑ज॒तं ते॑ अ॒न्यद्विषु॑रूपे॒ अह॑नी॒ द्यौरि॑वासि। विश्वा॒ हि मा॒या अव॑सि स्वधावो भ॒द्रा ते॑ पूषन्नि॒ह रा॒तिर॑स्तु ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śukraṁ te anyad yajataṁ te anyad viṣurūpe ahanī dyaur ivāsi | viśvā hi māyā avasi svadhāvo bhadrā te pūṣann iha rātir astu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शु॒क्रम्। ते॒। अ॒न्यत्। य॒ज॒तम्। ते॒। अ॒न्यत्। विषु॑रूपे॒ इति॒ विषु॑ऽरूपे। अह॑नी॒ इति॑। द्यौःऽइ॑व। अ॒सि॒। विश्वाः॑। हि। मा॒याः। अव॑सि। स्व॒धा॒ऽवः॒। भ॒द्रा। ते॒। पू॒ष॒न्। इ॒ह। रा॒तिः। अ॒स्तु॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:58» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चार ऋचावाले अट्ठावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर मनुष्य क्या करके क्या पाते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्वधावः) बहुत अन्नवाले और (पूषन्) पुष्टिकर्त्ता जन (ते) आपका (अन्यत्) और (शुक्रम्) शुद्धरूप तथा (ते) आपका (अन्यत्) रूप है सो तुम दोनों (विषुरूपे) व्याप्तरूप (अहनी) रात्रि दिन में (यजतम्) मिलो और (द्यौरिव) सूर्य्य प्रकाश के समान (विश्वाः) सम्पूर्ण (मायाः) बुद्धियों को तुम (अवसि) रक्खो जिन (ते) आपकी (भद्रा) कल्याण करनेवाली (रातिः) दानक्रिया (इह) यहाँ (अस्तु) हो वह (हि) ही आप सत्कार करने योग्य (असि) हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो पुरुष दिन-रात्रि के समान क्रम से कामों को सिद्ध करते हैं, वे सब सामग्री को पाकर सूर्य्य के प्रकाश के समान उत्तम कीर्तिवाले होते हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शुक्रं- यजतम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में प्राणसाधना करनेवाला पुरुष पूषा है। यह पूषा अपने जीवन को निर्मल व ज्ञानदीप्त बनाता है । हे (पूषन्) = प्राणसाधक पुरुष! (ते) = तेरा यह (शुक्रम्) = ज्ञानदीप्त रूप (अन्यत्) = विलक्षण ही है । तथा मन की निर्मलता के होने पर (यजतम्) = सब के साथ संगतिकरणवाला (ते) = तेरा रूप भी (अन्यत्) = विलक्षण है। इन शुक्र और यजत रूपों से तू (विषुरूपे अहनी इव असि) = भिन्नभिन्न उत्तम रूपवाली दिन-रात्रि के समान है। दिन के समान शुक्र [दीप्त] है । रात्रि के समान यजत है, रात में सब वैरविरोध को भूलकर गाढ़-निद्रा में उस आनन्दमयकोश में पहुँच जाते हैं, जो कि सबका एक है। (द्यौः) = इव असि तू इस द्युलोक के समान है, जो दीप्त है और समानरूप से सबका निवास स्थान है। [२] हे पूषन् ! तू (विश्वाः) = सब (हि) = ही (माया:) = प्रज्ञानों को (अवसि) = अपने अन्दर सुरक्षित करता है। प्राणसाधना से बुद्धि का दीपन होकर सब प्रज्ञानों की प्राप्ति होती है । हे (स्वधावः) = आत्मधारण-शक्तिवाले पूषन् [स्व-धा-वः] अथवा [स्व-धाव] प्राणसाधना द्वारा आत्मशोधन करनेवाले पूषन् ! (इह) = इस जीवन में (राति:) = दान [दान की वृत्ति] (ते भद्रास्तु) = तेरे लिये कल्याणकारिणी हो। यह दानवृत्ति ही मनुष्य के पापों का खण्डन करनेवाली होती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से मस्तिष्क दीप्त होता है, मन निर्मल होकर सब के प्रति मेल व प्रेमवाला होता है। यह दोनों ही रूप कितने सुन्दर हैं? सब प्रज्ञानोंवाला होता हुआ यह पूषा दान की वृत्तिवाला बनता है। यही उसे पवित्र बनाती है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कृत्वा किं प्राप्नुवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे स्वधावः पूषंस्ते तवान्यच्छुक्रं तेऽन्यदस्ति युवां विषुरूपेऽहनी यजतं द्यौरिव विश्वा मायास्त्वमवसि यस्य ते भद्रा रातिरिहास्तु स हि त्वं सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुक्रम्) शुद्धम् (ते) तव (अन्यत्) (यजतम्) सङ्गच्छेताम् (ते) तव (अन्यत्) रूपम् (विषुरूपे) व्याप्तस्वरूपे (अहनी) रात्रिदिने (द्यौरिव) सूर्य्यप्रकाश इव (असि) (विश्वाः) संपूर्णाः (हि) खलु (मायाः) प्रज्ञाः (अवसि) (स्वधावः) बह्वन्नयुक्त (भद्रा) कल्याणकारिणी (ते) तव (पूषन्) पोषणकर्त्तः (इह) (रातिः) दानक्रिया (अस्तु) ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! ये पुरुषा अहोरात्रवत्क्रमेण कार्य्याणि साध्नुवन्ति तेऽखिलां सामग्रीं प्राप्य सूर्य्यप्रकाश इव सत्कीर्त्तयो जायन्ते ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Pusha, giver of nourishment for body, mind and soul, you are the light of the world as the sun. Two are the forms of your beauty and glory, both different yet alike like the twin forms of the day: one is bright and inspiring, the other is soothing sweet adorable as the night. Lord of your own essential might, you animate, inspire, preserve and promote all intelligence, energy and powers of the world community. We pray, may your gifts of generosity be good for all in this world.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What do men attain by doing what-is told.

अन्वय:

○ nourisher! endowed with abundant food materials, one is your pure form and the other is your lovely from-worthy of association. Unite them both like the pervasive day and night. Like the light of the sun, you protect our good intellects. You are worthy of honor, whose gift or donation is auspicious (beneficial).

भावार्थभाषाः - O men! those, who accomplish all works in proper order like the day and night, become glorious like the light of sun, having obtained all material or necessary articles.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वानाच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जी माणसे दिवस रात्रीप्रमाणे क्रमबद्ध कार्य करतात ती संपूर्ण पदार्थ प्राप्त करून सूर्यप्रकाशाप्रमाणे उत्तम कीर्ती प्राप्त करतात. ॥ १ ॥