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पू॒षणं॒ न्व१॒॑जाश्व॒मुप॑ स्तोषाम वा॒जिन॑म्। स्वसु॒र्यो जा॒र उ॒च्यते॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pūṣaṇaṁ nv ajāśvam upa stoṣāma vājinam | svasur yo jāra ucyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पू॒षण॑म्। नु। अ॒जऽअ॑श्वम्। उप॑। स्तो॒षा॒म॒। वा॒जिन॑म्। स्वसुः॑। यः। जा॒रः। उ॒च्यते॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:55» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किन गुणों से उत्कृष्ट होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (स्वसुः) बहिन के समान वर्त्तमान उषा का (जारः) जीर्ण करानेवाला (उच्यते) कहा जाता है उस (वाजिनम्) ज्ञान और बल का देनेवाला (अजाश्वम्) जिसमें बकरी और घोड़े विद्यमान (पूषणम्) जो पुष्टि करनेवाला है, उस आदित्य की हम (नु) शीघ्र (उप, स्तोषाम) प्रशंसा करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा आदि मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य रात्रि का निवारण करनेवाला है, वैसे ही प्रजाजनों में जारकर्म में वर्त्तमान मनुष्यों का निवारण करो ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'अजाश्व वाजी पूषा' का स्तवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (नु) = अब (अजाश्वम्) = गतिशील इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करानेवाले, (वाजिनम्) = शक्तिशाली, (पूषणम्) = पोषक प्रभु को (उपस्तोषाम) = हम उपस्तुत करते हैं। प्रभु ही स्तोताओं को इन गतिशील इन्द्रियों को व शक्ति को प्राप्त कराके पुष्ट करते हैं । [२] हम उस पूषा का स्तवन करते हैं (यः) = जो (स्वसुः) = [सु असुः] उत्तम प्राणशक्ति को देनेवाले हैं तथा (जारः) = अज्ञानरूप अन्धकार को विनष्ट करनेवाले (उच्यते) = कहे जाते हैं। पूषा सूर्य को भी कहते हैं। सूर्य भी उत्तम प्राणशक्ति को देता है ' प्राणः प्रजानामुदयन्त्येष सूर्यः'। तथा अन्धकार विनाशक है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु पोषक हैं, गतिशील इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करानेवाले हैं, शक्ति को देते हैं। उत्तम प्राणशक्ति को प्रभु प्राप्त कराते हैं तथा अज्ञानान्धकार को नष्ट करते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कैर्गुणैरुत्कृष्टो भवतीत्याह ॥

अन्वय:

यः स्वसुर्जार उच्यते तं वाजिनमजाश्वं पूषणमादित्यं वयं नूप स्तोषाम ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषणम्) पोषकम् (नु) सद्यः (अजाश्वम्) अजाश्चाश्वाश्चास्मिँस्तम् (उप) (स्तोषाम) प्रशंसेम (वाजिनम्) ज्ञानबलप्रदम् (स्वसुः) भगिन्या इव वर्त्तमानाया उषसः (यः) (जारः) जरयिता (उच्यते) ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजादयो मनुष्या ! यथा सूर्यो रात्रेर्निवारकोऽस्ति तथैव प्रजासु जारकर्मणि वर्त्तमानान् मनुष्यान्निवारयत ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We honour and adore the sun, Pusha, giver of vitality and potency, rider of the eternal chariot flying like a courser in space which steals away the dawn, its own creation, they say.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

By hearing which virtues does a man become exalted-is told.

अन्वय:

Let us praise that sun, who is said to be the destroyer of the dawn, which is like his sister, by whose rays all beings like goats, horses are benefitted, and who is giver of strength.

भावार्थभाषाः - O king and officers of the State ! as the sun is the destroyer of the night, so remove all those from your state, who are engaged in debauchery.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा अग्नीचा मित्र वायू आहे व रात्रीचे निवारण करणारा सूर्य आहे तसे माझे धार्मिक मित्र व मी मिळून रात्रीप्रमाणे असलेल्या अविद्येचे निवारण करू. ॥ ४ ॥