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उ॒त नो॑ गो॒षणिं॒ धिय॑मश्व॒सां वा॑ज॒सामु॒त। नृ॒वत्कृ॑णुहि वी॒तये॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta no goṣaṇiṁ dhiyam aśvasāṁ vājasām uta | nṛvat kṛṇuhi vītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। नः॒। गो॒ऽसनि॑म्। धिय॑म्। अ॒श्व॒साम्। वा॒ज॒साम्। उ॒त। नृ॒ऽवत्। कृ॒णु॒हि॒। वी॒तये॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:53» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पशु पालनेवाले विद्वन् ! आप (नः) हम लोगों के (वीतये) प्राप्ति के अर्थ (गोषणिम्) गौओं को अलग-अलग करनेवाली (उत) और (अश्वसाम्) घोड़ों का विभाग करनेवाली (उत) और (वाजसाम्) अन्नादि पदार्थों का विभाग करनेवाली (धियम्) उत्तम बुद्धि को (नृवत्) मनुष्यों के तुल्य (कृणुहि) करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को गौ, अश्व और धन-धान्य की वृद्धि के लिये पुरुषार्थी जनों के समान महान् पुरुषार्थ करना योग्य है ॥१०॥ इस सूक्त में राजमार्ग, डाकुओं का निवारण, उत्तम दक्षिणा देनेवालों को प्रेरणा, दुष्टों को मारना, श्रेष्ठों की पालना और पशुओं का बढ़ाना कहा है, इस कारण इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी योग्य है ॥ यह त्रेपनवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उत्तम ज्ञानेन्द्रियाँ-कर्मेन्द्रियाँ- बुद्धि व शक्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (नः धियम्) = हमारी बुद्धि को (गोषणिम्) = उत्कृष्ट ज्ञानेन्द्रियों का सेवन करनेवाली (उत) = तथा (अश्वसाम्) = उत्कृष्ट कर्मेन्द्रियों का सेवन करनेवाली (कृणुहि) = करिये। साथ ही हमारी बुद्धि को (वाजसाम्) = शक्ति का सेवन करनेवाली करिये । हमारी बुद्धि शक्ति से युक्त हो । [२] हे प्रभो ! (नृवत्) = एक पथ-प्रदर्शक की तरह [नृ=नेता] हमारे लिये वीतये सब अन्धकारों के विनाश के लिये [असन] (कृणुहि) = व्यवस्था को करिये। आपसे प्रदर्शित मार्ग पर चलते हुए हम लक्ष्य पर पहुँचनेवाले हों।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें प्रभु उत्तम ज्ञानेन्द्रियाँ, उत्तम कर्मेन्द्रियाँ, बुद्धि व शक्ति को प्राप्त करायें । अगले सूक्त के ऋषि भी 'भरद्वाज बार्हस्पत्य' ही हैं। वे 'पूषा' नाम से ही प्रभु की आराधना करते हैं -
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे पशुपाल विद्वंस्त्वं नो वीतये गोषणिमुताऽश्वसामुत वाजसां धियं नृवत्कृणुहि ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (नः) अस्मभ्यम् (गोषणिम्) गवां विभाजिकाम् (धियम्) प्रज्ञाम् (अश्वसाम्) अश्वानां संविभाजिकाम् (वाजसाम्) वाजस्याऽन्नादेर्विभाजिकाम् (उत) अपि (नृवत्) मनुष्यवत् (कृणुहि) (वीतये) प्राप्तये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्गवाश्वधनधान्यवृद्धये पुरुषार्थिवन्महान् पुरुषार्थः कर्त्तव्यः ॥१०॥ अत्र राजमार्गदस्युनिवारणोत्तमदक्षिणादानप्रेरणा दुष्टहिंसनं श्रेष्ठपालनं पशुवर्धनं चोक्तमत एतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिपञ्चाशत्तमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Lord of light and life’s development, give us the gift of that knowledge and intelligence which may develop the wealth of cows and horses and create modes and means of success and prosperity. Give us that intelligence inspired with love for people so that we may live in peace and joy.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What should men do-is further told.

अन्वय:

O highly learned person, and nourisher of the animals! for our attainment create a intellect (understanding) which divides the cows, the horses and food like men in general.

भावार्थभाषाः - Men should exert themselves well for the increase of the cattle wealth and grains like industrious persons.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी गाई, घोडे, धन, धान्य इत्यादींच्या वृद्धीसाठी पुरुषार्थी लोकांप्रमाणे महान पुरुषार्थ करणे योग्य आहे. ॥ १० ॥