वांछित मन्त्र चुनें

उ॒त त्वं सू॑नो सहसो नो अ॒द्या दे॒वाँ अ॒स्मिन्न॑ध्व॒रे व॑वृत्याः। स्याम॒हं ते॒ सद॒मिद्रा॒तौ तव॑ स्याम॒ग्नेऽव॑सा सु॒वीरः॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tvaṁ sūno sahaso no adyā devām̐ asminn adhvare vavṛtyāḥ | syām ahaṁ te sadam id rātau tava syām agne vasā suvīraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्वम्। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। नः॒। अ॒द्य। दे॒वान्। अ॒स्मिन्। अ॒ध्व॒रे। व॒वृ॒त्याः॒। स्याम्। अ॒हम्। ते॒। सद॑म्। इ॒त्। रा॒तौ। तव॑। स्या॒म्। अ॒ग्ने॒। अव॑सा। सु॒ऽवीरः॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:50» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:9


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किससे क्या प्रार्थना करनी योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) शरीर और आत्मा के बल से युक्त विद्वान् के (सूनो) विद्यासम्बन्धी पुत्र (अग्ने) अग्नि के तुल्य प्रकाशित आत्मावाले ! (त्वम्) आप (अद्या) आज (अस्मिन्) इस (अध्वरे) न नष्ट करने योग्य विद्या प्राप्ति के व्यवहार में (नः) हम (देवान्) विद्वानों को वा दिव्य भोगों को (आ, ववृत्याः) अच्छे प्रकार प्रवृत्त कीजिये जिससे (अहम्) मैं (सदम्) प्राप्त होने योग्य पदार्थ को पाकर (ते) आपके (रातौ) दान कर्म में स्थिर (स्याम्) होऊँ (उत) और (तव) आपके (अवसा) रक्षा आदि कर्म से (सुवीरः) सुन्दर योद्धाओंवाला मैं (इत्) ही (स्याम्) होऊँ ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! यदि आप सब हमको सुख पहुँचाइये तो हम विद्या देनेवाले महावीर होकर आपकी सेवा को निरन्तर करें ॥९॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिव्यगुणों व वीरता की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (उत) = और हे (सहसः सूनो) = बल के पुञ्ज (अग्ने) = परमात्मन् (त्वम्) = आप (अद्या) = आज (नः) = हमारे (अस्मिन् अध्वरे) = इस जीवनयज्ञ में (देवान् आववृत्या:) = सब देवों को आवृत्त करिये, प्राप्त कराइये । हमारा जीवन आपके अनुग्रह से दिव्यगुण सम्पन्न बने । [२] (अहम्) = मैं (सदं इत्) = सदा ही (ते) = आपके (रातौ) = दान में (स्याम्) = होऊँ, आपके दान का मैं सदा पात्र बनूँ । हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (तव अवसा) = आपके रक्षण से मैं (सुवरिः) = उत्तम वीरतावाला व वीर सन्तानोंवाला बनूँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमारे जीवनयज्ञ को दिव्यगुणमय बनायें। प्रभु के दानों के हम पात्र बनें । प्रभु से रक्षित होते हुए हम सुवीर बनें।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कस्मात् किं प्रार्थनीयमित्याह ॥

अन्वय:

हे सहसः सूनोऽग्ने ! त्वमद्याऽस्मिन्नध्वरे नो देवाना ववृत्या येनाहं सदं प्राप्य ते रातौ स्थिरः स्यामुत तवावसा सुवीरोऽहमिदेव स्याम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) (त्वम्) (सूनो) विद्यासन्तान (सहसः) शरीरात्मबलवतो विदुषः (नः) अस्मान् (अद्या) अस्मिन्दिने। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (आ) (देवान्) विदुषो दिव्यान् भोगान् वा (अस्मिन्) (अध्वरे) अहिंसनीये विद्याप्राप्तिव्यवहारे (ववृत्याः) प्रवर्त्तयेः (स्याम्) भवेयम् (अहम्) (ते) तव (सदम्) प्राप्तव्यम् (इत्) एव (रातौ) दाने (तव) (स्याम्) (अग्ने) पावकवत्प्रकाशात्मन् (अवसा) रक्षणादिना (सुवीरः) सुभटः ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! यदि भवानिदानीमस्मान् सुखं प्रापयेत्तर्हि वयं विद्यादातारो महावीरा भूत्वा तव सेवां सततं कुर्याम ॥९॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O light and fire of life, Agni, off-spring of divine strength and vitality, in this yajnic programme of love and non-violent creation of an enlightened society, let the divine values and virtues of nature and humanity turn and come our way and flow on. O lord of brilliance, let me stay established for all time in the bliss of your generosity and, under your protection and guidance, let me command the heights of heroism with the brave.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Whom should men pray for what-is told.

अन्वय:

O (spiritual) son of a man ! who is endowed with physical and spiritual strength and illumined soul like the fire! do you bring here to-day in the enlightened persons or divine enjoyments in this inviolable dealing of the attainment of true knowledge, so that I may be firm in your gift having attained the thing worthy of attainment and under your protection, may I be a hero and enlightened person.

भावार्थभाषाः - O enlightened person! if you lead us to happiness we may also serve you constantly being givers of knowledge and great heroes.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना ! जर तू आम्हाला सुख देशील तर आम्ही विद्यादान करणारे महावीर बनून तुझ्या सेवेत राहू. ॥ ९ ॥