हु॒वे वः॑ सू॒नुं सह॑सो॒ युवा॑न॒मद्रो॑घवाचं म॒तिभि॒र्यवि॑ष्ठम्। य इन्व॑ति॒ द्रवि॑णानि॒ प्रचे॑ता वि॒श्ववा॑राणि पुरु॒वारो॑ अ॒ध्रुक् ॥१॥
huve vaḥ sūnuṁ sahaso yuvānam adroghavācam matibhir yaviṣṭham | ya invati draviṇāni pracetā viśvavārāṇi puruvāro adhruk ||
हु॒वे। वः॒। सू॒नुम्। सह॑सः। युवा॑नम्। अद्रो॑घऽवाचम्। म॒तिऽभिः॑। यवि॑ष्ठम्। यः। इन्व॑ति। द्रवि॑णानि। प्रऽचे॑ताः। वि॒श्वऽवा॑राणि। पु॒रु॒ऽवारः॑। अ॒ध्रुक् ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सात ऋचावाले पाँचवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को क्या ग्रहण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'पुरुवार अधुक्' प्रभु
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यैः किं ग्राह्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! यः प्रचेताः पुरुवारोऽध्रुग् विश्ववाराणि द्रविणानीन्वति तं मतिभिः सह वर्त्तमानं सहसः सूनुं युवानमद्रोघवाचं यविष्ठं वो हुवे ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men take or accept is told.
O men! I invoke for your guidance. You are a man who is endowed with exalted knowledge or wisdom, accepted by many, devoid of malice youthful, most energetic, son of a mighty person and whose speech is free from all kinds of animosity; and who obtains all objects desired by all. You are surrounded by wise men.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी व विद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
