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इन्द्र॑ त्रि॒धातु॑ शर॒णं त्रि॒वरू॑थं स्वस्ति॒मत्। छ॒र्दिर्य॑च्छ म॒घव॑द्भ्यश्च॒ मह्यं॑ च या॒वया॑ दि॒द्युमे॑भ्यः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indra tridhātu śaraṇaṁ trivarūthaṁ svastimat | chardir yaccha maghavadbhyaś ca mahyaṁ ca yāvayā didyum ebhyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑। त्रि॒ऽधातु॑। श॒र॒णम्। त्रि॒ऽवरू॑थम्। स्व॒स्ति॒ऽमत्। छ॒र्दिः। य॒च्छ॒। म॒घव॑त्ऽभ्यः। च॒। मह्य॑म्। च॒। य॒वय॑। दि॒द्युम्। ए॒भ्यः॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:46» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य कैसे गृह को बनावें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्यों से युक्त आप (त्रिधातु) तीन सुवर्ण, चाँदी और ताँबा ये धातु जिसमें उस (त्रिवरूथम्) शीत, उष्ण और वर्षा ऋतु में उत्तम (शरणम्) आश्रय करने योग्य (स्वस्तिमत्) बहुत सुख से युक्त (छर्दिः) गृह को (यच्छ) ग्रहण करिये वा दीजिये और जिन (मघवद्भ्यः) बहुत धनवालों के और (मह्यम्) मुझ धनयुक्त के लिये (च) भी ग्रहण करिये वा दीजिये (एभ्यः) इन वर्त्तमानों के लिये (दिद्युम्) सुप्रकाश को (च) भी (यावया) संयुक्त कराइये ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जो सब ऋतुओं में सुखकारक, धन धान्य से युक्त, वृक्ष, पुष्प, फल, शुद्ध वायु जल तथा धार्मिक और धनाढ्यों से युक्त गृह उसको बनाकर वहाँ निवास करें, जिससे सर्वदा आरोग्य से सुख बढ़े ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उत्तम गृह

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (मघवद्भ्यः) = [मघ= मख] यज्ञशील पुरुषों के लिये (शरणम्) = गृह को (यच्छ) = दीजिये। जो घर (त्रिधातु) = तीनों बालक, युवक व वृद्धों का सम्यक् धारण करनेवाला हो । (त्रिवरूथम्) = शीत, आतप व वर्षा तीनों का निवारण करनेवाला हो । (स्वस्तिमत्) = कल्याणकर हो । (छर्दिः) = उत्तम छत से युक्त हो [छर्दिष्मत्] । [२] (च) = और इस प्रकार के गृहों को प्राप्त कराके आप (मह्यम्) = मेरे लिये (एभ्यः) = इन गृहों से (दिद्युम्) = खण्डनकारिणी [दो अवखण्डने] विद्युत् को यावया= पृथक् करिये। इन घरों पर विद्युत् पतन का भय न हो।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम उत्तम गृहों को बनाकर स्वस्थ मन से उनमें निर्भयतापूर्वक रहते हुए उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़नेवाले हों।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः कीदृशं गृहं निर्मिमीरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं त्रिधातु त्रिवरूथं शरणं स्वस्तिमच्छर्दिर्यच्छ येभ्यो मघवद्भ्यो मह्यं च यच्छैभ्यो दिद्युं च यावया ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) (त्रिधातु) त्रयः सुवर्णरजतताम्रा धातवो यस्मिंस्तत् (शरणम्) आश्रयितुं योग्यम् (त्रिवरूथम्) शीतोष्णवर्षासूत्तमम् (स्वस्तिमत्) बहुसुखयुक्तम् (छर्दिः) गृहम् (यच्छ) गृहाण देहि वा (मघवद्भ्यः) बहुधनेभ्यः (च) (मह्यम्) धनाढ्याय (च) (यावया) संयोजय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (दिद्युम्) सुप्रकाशम् (एभ्यः) वर्त्तमानेभ्यः ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यत्सर्वर्त्तुषु सुखकरं धनधान्ययुक्तं वृक्षपुष्पफलशुद्धवायूदकधार्मिकधनाढ्यसमन्वितं गृहं तन्निर्माय तत्र निवसनीयं यतः सर्वदाऽऽरोग्येन सुखं वर्धेत ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord ruler of the wealth of nations, for the men of wealth, power, honour and generosity of heart, and for me too, give a home made of three metals and materials, comfortable in three seasons of summer, winter and rains, a place of rest, peace and security for complete well being. Give the light for them, keep off the blaze from them.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What kind of house should men build-is told.

अन्वय:

O king ! grant us a happy home in which three metals-gold, silver and copper have been duly used and which is equally good and comfortable in winter, summer and rainy seasons. When you grant such a dwelling place to wealthy persons and myself, make them united with good light.

भावार्थभाषाः - Men should build a house, which is comfortable in all seasons, is endowed with wealth and grains, full of trees, flowers, fruits, pure air, water and righteous and well to do persons and having built it, should dwell there, so that happiness may ever grow with health.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सर्व ऋतूंमध्ये सुखकारक, धनधान्यांनी युक्त वृक्ष, पुष्प, फल, शुद्ध वायू, जल तसेच धार्मिक व धनवानांसह घरे बांधून त्यात निवास करावा, ज्यामुळे आरोग्य प्राप्त होऊन सुख वाढेल. ॥ ९ ॥