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यदि॑न्द्र॒ नाहु॑षी॒ष्वाँ ओजो॑ नृ॒म्णं च॑ कृ॒ष्टिषु॑। यद्वा॒ पञ्च॑ क्षिती॒नां द्यु॒म्नमा भ॑र स॒त्रा विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad indra nāhuṣīṣv ām̐ ojo nṛmṇaṁ ca kṛṣṭiṣu | yad vā pañca kṣitīnāṁ dyumnam ā bhara satrā viśvāni pauṁsyā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। इ॒न्द्र॒। नाहु॑षीषु। आ। ओजः॑। नृ॒म्णम्। च॒। कृ॒ष्टिषु॑। यत्। वा॒। पञ्च॑। क्षि॒ती॒नाम्। द्यु॒म्नम्। आ। भ॒र॒। स॒त्रा। विश्वा॑नि। पौंस्या॑ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:46» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:28» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा को कहाँ क्या धारण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) प्रजा के प्रिय को धारण करनेवाले ! आप (कृष्टिषु) मनुष्यों में और (नाहुषीषु) मनुष्यसम्बन्धी प्रजाओं में (यत्) जो (ओजः) बलकारक अन्न आदि (नृम्णम्) धन (च) और होवे उसको (आ, भर) धारण करिये (वा) वा (पञ्च) पाँच तत्त्वों और (क्षितीनाम्) राजसम्बन्धिनी भूमियों के मध्य में (यत्) जो (द्युम्नम्) शुद्ध यश है अथवा (सत्रा) सत्य (विश्वानि) सम्पूर्ण (पौंस्या) पुरुषार्थ से उत्पन्न हुए बल वर्त्तमान हैं, उनको (आ) धारण करिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप सम्पूर्ण प्रजाओं को धन-धान्य और विद्या से युक्त करिये तो पञ्चतत्त्वनामक राज्य को प्राप्त होकर धवलित यश को प्राप्त हूजिये ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ओज-नृम्ण-द्युम्न-पौंस्य

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यत्) = जो (ओजः) = बल (च) = और (नृम्णम्) = धन (नाहुषीषु) = मानव (कृष्टिषु) = प्रजाओं में होना चाहिए उसे आभर हमारे लिये प्राप्त कराइये । [२] (यद्वा) = और जो (पञ्च क्षितीनाम्) ='अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनन्दमय' इन पाँचों भूमियों का (द्युम्नम्) = आन्तर ऐश्वर्य है, उसे हमारे लिये प्राप्त कराइये और (सत्रा) = सत्य (विश्वानि) = सब (पौंस्यानि) = बलों को हमें प्राप्त कराइये ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु कृपा से हमें 'ओज, नृम्ण, द्युम्न व पौंस्य' प्राप्त हों ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्ञा कुत्र किं धर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं कृष्टिषु नाहुषीषु यदोजो नृम्णं च भवेत्तदाऽऽभर वा पञ्च क्षितीनां यद् द्युम्नमस्त्यथवा सत्रा विश्वानि पौंस्या वर्त्तन्ते तानि चाऽऽभर ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) (इन्द्र) प्रजाप्रियधर्त्तः (नाहुषीषु) नहुषाणां मनुष्याणामासु प्रजासु (आ) (ओजः) बलकरमन्नादिकम् (नृम्णम्) धनम् (च) (कृष्टिषु) मनुष्येषु (यत्) (वा) (पञ्च) पञ्चानां तत्त्वाख्यानाम् (क्षितीनाम्) राजसम्बन्धिनीनां भूमीनां मध्ये (द्युम्नम्) शुद्धं यशः (आ) (भर) (सत्रा) सत्यानि (विश्वानि) सर्वाणि (पौंस्या) पुरुषार्थजानि बलानि ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि भवान्त्सर्वाः प्रजा धनधान्यविद्यायुक्ताः कुर्यात्तर्हि पञ्चतत्त्वाख्यं राज्यं प्राप्य धवलं यशः प्राप्नुयात् ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, ruler of the world, whatever the lustre and splendour in humanity across history, whatever the power and wealth among communities, whatever the virtue and quality in the five elements of nature or lands of the earth, or whatever the strength and vigour of the world of existence, you bear and symbolise all that. Pray, O lord, bear and bring us all that.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What should a king keep and where-is told.

अन्वय:

O Indra! you are lover of your subjects. Bring to us all nourishing food materials, strength and wealth that is found among men. Bring to us, all manly powers produced by exertion, that are found on the land, consisting of five great elements and pure fame.

भावार्थभाषाः - king! if you make all subjects, full of knowledge, wealth and grain, then you can attain pure glory (or good name) and by obtaining land in which all the five elements are in proper proportion and in pure form.
टिप्पणी: It is certainly wrong on the part of Shri Sayahacharya; Prof. Wilson, Griffith and other to take Nahusha as the name of a particular king instead of taking it for men in general as clearly stated in the Vedic Lexicon Nighantu.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू संपूर्ण प्रजेला धनधान्य व विद्येने युक्त करशील तर पंचतत्त्व नामक राज्य प्राप्त होऊन उज्ज्वल यश मिळेल. ॥ ७ ॥