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तमु॑ त्वा॒ यः पु॒रासि॑थ॒ यो वा॑ नू॒नं हि॒ते धने॑। हव्यः॒ स श्रु॑धी॒ हव॑म् ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam u tvā yaḥ purāsitha yo vā nūnaṁ hite dhane | havyaḥ sa śrudhī havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। यः। पु॒रा। आसि॑थ। यः। वा॒। नू॒नम्। हि॒ते। धने॑। हव्यः॑। सः। श्रु॒धि॒। हव॑म् ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (यः) जो आप (हिते) सुखकारक (धने) धन में (पुरा) प्रथम से (आसिथ) थे और (यः) जो (वा) वा (नूनम्) निश्चित सुखकारक धन में (हव्यः) पुकारने के योग्य हो (तम्, उ) उन्हीं (त्वा) आपको हम लोग सुनावें (सः) वह आप हम लोगों की (हवम्) बात को (श्रुधी) सुनिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो राजा सब के हित की इच्छा करे और सब को धन और ऐश्वर्य्य से युक्त करता है, वह बलिष्ठ और निर्बलों की बातों की प्रीति से सुन कर यथार्थ न्याय करता है, उसी का सब लोग निरन्तर सत्कार करें ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

हव्य प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे इन्द्र ! (तं त्वा उ) = उन आपको ही हम स्तुत करते हैं (यः) = जो आप (पुरा) = पहले भी (हव्यः) = पुकारने योग्य आसिथ थे (यः वा) = और जो (नूनम्) = आज भी (हिते धने) = हितकर धन के निमित्त (हव्यः) = पुकारने योग्य हैं। आप से ही हमें हितकर धन प्राप्त कराया जाता है । [२] (सः) = वे आप (हवं श्रुधि) = हमारी पुकार को सुनिये । प्रभु से हम सुनी जानेवाली पुकार के योग्य बनेंगे तो हमारी सभी कामनाएँ पूर्ण हो जायेगी ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ही पुकारने योग्य हैं, प्रभु ही हितकर धन को प्राप्त कराते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यस्त्वं हिते धने पुराऽऽसिथ यो वा नूनं हिते धने हव्योऽसि तमु त्वा वयं श्रावयेम स त्वमस्माकं हवं श्रुधी ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (उ) (त्वा) त्वाम् (यः) (पुरा) प्रथमतः (आसिथ) (यः) (वा) (नूनम्) निश्चितम् (हिते) सुखकरे (धने) (हव्यः) आह्वयितुं योग्यः (सः) (श्रुधी) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हवम्) वार्त्ताम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो राजा सर्वेषां हितमिच्छेत् सर्वान् धनैश्वर्य्ययुक्तान् करोति स सबलनिर्बलानां वार्त्ताः प्रीत्या श्रुत्वा यथार्थं न्यायं करोति तमेव सर्वे सततं सत्कुर्वन्तु ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - You who have ever been with us and for us since eternity, who surely are with us in our best of prosperity and ever at the call of action, the same, O lord adorable, we invoke and pray listen to our call and come and bless.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How should the kings and their subjects deal with one another is told.

अन्वय:

O king! listen to us, you who have been worthy of invocation and conferring wealth with certainty. We put our request before you.

भावार्थभाषाः - O men! that king alone should always be respected, who desires for the welfare of all, who makes all endowed with wealth and prosperity and who administers true justice after listening to both strong and weak.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो राजा सर्वांच्या हिताची इच्छा करतो व सर्वांना धन व ऐश्वर्याने युक्त करतो, बलवान व निर्बलांच्या समस्या प्रेमाने ऐकून यथार्थ न्याय करतो त्याचाच सर्व लोकांनी सत्कार करावा. ॥ ११ ॥