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यो र॑यिवो र॒यिन्त॑मो॒ यो द्यु॒म्नैर्द्यु॒म्नव॑त्तमः। सोमः॑ सु॒तः स इ॑न्द्र॒ तेऽस्ति॑ स्वधापते॒ मदः॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo rayivo rayiṁtamo yo dyumnair dyumnavattamaḥ | somaḥ sutaḥ sa indra te sti svadhāpate madaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। र॒यि॒ऽवः॒। र॒यिम्ऽत॑मः। यः। द्यु॒म्नैः। द्यु॒म्नव॑त्ऽतमः। सोमः॑। सु॒तः। सः। इ॒न्द्र॒। ते॒। अस्ति॑। स्व॒धा॒ऽप॒ते॒ मदः॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:44» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चौबीस ऋचावाले चवालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा आदि को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्वधापते) अन्न के स्वामिन् (रयिवः) अच्छे धनोंवाले (इन्द्र) धन के धारण करनेवाले ! (यः) जो (रयिन्तमः) अत्यन्त धनाढ्य और (यः) जो (द्युम्नैः) धनों वा यशों से (द्युम्नवत्तमः) अत्यन्त यशोधन युक्त (सुतः) निर्म्माण किया गया (सोमः) ऐश्वर्य्य (मदः) आनन्द देनेवाला (ते) आपका (अस्ति) है (सः) वह आपसे सत्कार करके स्वीकार करने योग्य है ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे राजा आदि जनो ! आप लोगों को चाहिये कि अपने राज्य में बहुत धनाढ्य विद्वानों का सत्कार करके रक्षा करें, जिससे निरन्तर लक्ष्मी बढ़े ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रयिन्तमः-द्युम्नवत्तमः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (रयिवः) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यः ते सुतः सोमः) = जो आपके द्वारा उत्पन्न किया गया यह सोम है (सः) = वह (रयिन्तम:) = सर्वोत्कृष्ट रयि है, प्रमुख धन है । (यः) = जो सोम है वह (द्युम्नैः द्युम्नवत्तमः) = ज्ञानों से अतिशयेन ज्ञानज्योतिवाला है। यह सोम वास्तविक धन है और ज्ञान को प्राप्त करानेवाला है । [२] हे इन्द्र शक्तिशालि प्रभो ! हे (स्वधापते) = आत्मधारण-शक्ति के स्वामिन् ! यह आपका सोम (मदः अस्ति) = उल्लास का जनक है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम ही उत्कृष्ट धन है, यही ज्ञान ज्योति को जगानेवाला है, उल्लास का जनक है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजादिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे स्वधापते रयिव इन्द्र ! यो रयिन्तमो यो द्युम्नैर्द्युम्नवत्तमः सुतः सोमो मदस्तेऽस्ति स त्वया सत्कृत्या स्वीकर्त्तव्यः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (रयिवः) प्रशस्ता रायो विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (रयिन्तमः) अतिशयेन धनाढ्यः (यः) (द्युम्नैः) धनैर्यशोभिर्वा (द्युम्नवत्तमः) अतिशयेन यशोधनयुक्तः (सोमः) ऐश्वर्यम् (सुतः) निर्मितः (सः) (इन्द्र) धनन्धर (ते) तव (अस्ति) (स्वधापते) अन्नस्वामिन् (मदः) आनन्ददः ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे राजादयो जना ! युष्माभिः स्वकीयराज्ये बहवो धनाढ्या विद्वांसः सत्कृत्य रक्षणीया येन सततं श्रीर्वर्धेत ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, supreme lord of your own nature, power and law, that soma beauty and bliss of the world of existence created by you, which is most abundant in wealth and brilliance, which is most glorious in splendour and majesty, is all yours, all for yourself, all your own pleasure, passion and ecstasy.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What should king and his ministers do-is told.

अन्वय:

O lord of food-wealthy king! he who is the wealthiest and most glorious man endowed with wealth and good reputation should be accepted by you with honor and the wealth required by him should also be utilized properly.

भावार्थभाषाः - O king and officers of the State / you should keep in your State many wealthy and enlightened persons so that the prosperity may grow even more.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, विद्वान व ईश्वराच्या गुण-कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू आपल्या राज्यातील अत्यंत धनाढ्य विद्वानांचा सत्कार करून रक्षण कर. ज्यामुळे सतत श्रीमंती वाढावी. ॥ १ ॥