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त्वम॒पो वि दुरो॒ विषू॑ची॒रिन्द्र॑ दृ॒ळ्हम॑रुजः॒ पर्व॑तस्य। राजा॑भवो॒ जग॑तश्चर्षणी॒नां सा॒कं सूर्यं॑ ज॒नय॒न्द्यामु॒षास॑म् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam apo vi duro viṣūcīr indra dṛḻham arujaḥ parvatasya | rājābhavo jagataś carṣaṇīnāṁ sākaṁ sūryaṁ janayan dyām uṣāsam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। अ॒पः। वि। दुरः॑। विषू॑चीः। इन्द्र॑। दृ॒ळ्हम्। अ॒रु॒जः॒। पर्व॑तस्य। राजा॑। अ॒भ॒वः॒। जग॑तः। च॒र्ष॒णी॒नाम्। सा॒कम्। सूर्य॑म्। ज॒नय॑न्। द्याम्। उ॒षस॑म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:30» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले जगदीश्वर ! जैसे सूर्य्य (पर्वतस्य) मेघ के (दृळ्हम्) दृढ़ भाग को भङ्ग करता और (विषूचीः) व्याप्त (दुरः) द्वारों को प्रकाशित करता हुआ (अपः) जलों वा प्राणों को (वि) विशेष कर वर्षाता है तथा (जगतः) संसार के (चर्षणीनाम्) मनुष्यों का (राजा) राजा होता है, वैसे (त्वम्) आप (सूर्य्यम्) सूर्य्य और (द्याम्) प्रकाश को और (उषासम्) दिन के मुख प्रभात को (जनयन्) उत्पन्न करते हुए सबके (साकम्) साथ व्याप्त हुए दुःख को (अरुजः) नष्ट कीजिये और संसार के मनुष्यों के राजा (अभवः) हूजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो सूर्य आदि का उत्पन्न करनेवाला, प्रकाशक और धारण करनेवाला तथा सम्पूर्ण पदार्थों में व्याप्त जगदीश्वर है, उसकी आत्मा के साथ निरन्तर उपासना करो ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा, सूर्य, और ईश्वर के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तीसवाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सूर्य, द्युलोक व उषा का प्रादुर्भाव

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमात्मन्! (त्वम्) = आपने (पर्वतस्य) = इस पर्वोवाले मेघ के (दुरः) = द्वारों को (दृढम्) = दृढ़ता से (अरुजः) = नष्ट किया और (अपः) = जलों को (विषूचीः वि) [असृजः ] = चारों ओर गतिवाला किया है। इस प्रकार जलवर्षण की व्यवस्था से आपने सारे संसार का पोषण किया है। [२] (जगतः) = इस सारे जगत् के, ब्रह्माण्ड के पिण्डों के तथा (चर्षणीनाम्) = श्रमशील मनुष्यों के (राजा अभवः) = आप शासक हैं। आप (साकम्) = साथ-साथ ही (सूर्यम्) = सूर्य को (द्याम्) = प्रकाशमय अन्तरिक्षलोक को तथा (उषासम्) = उषाकाल को (जनयन्) = प्रादुर्भूत करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु मेघों के द्वारों को खोलकर सर्वत्र वर्षण करते हुए सारे जगत् मनुष्यों के जीवनों को दीप्त करते हैं। सूर्य को द्युलोक को व उषाकाल को प्रादुर्भूत करते हुए मनुष्यों के जीवन में दीप्ति प्राप्त कराते हैं। सूर्य आदि के अभाव में जीवन की कल्पना ही नहीं होती। इस लोक में सुहोत्र - उत्तम वाणीवाले व उत्तम यज्ञशील पुरुष [इन्द्र] का आराधन करते हैं -
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यथा सूर्य्यः पर्वतस्य दृळ्हं रुजति विषूचीर्दुरः प्रकाशयन्नपो वि वर्षयति जगतश्चर्षणीनां राजा भवति तथा त्वं सूर्य्यं द्यामुषासं च जनयन्त्सर्वैः साकं व्याप्तः सन् दुःखमरुजो जगतश्चर्षणीनाञ्च राजाऽभवः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (अपः) जलानि प्राणान् वा (वि) (दुरः) द्वाराणि (विषूचीः) व्याप्तानि (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद जगदीश्वर (दृळ्हम्) ध्रुवम् (अरुजः) रुज (पर्वतस्य) मेघस्य (राजा) (अभवः) भवसि (जगतः) संसारस्य (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (साकम्) सह (सूर्य्यम्) (जनयन्) उत्पादयन् (द्याम्) प्रकाशम् (उषासम्) दिनमुखं प्रभातम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यः सूर्यादीनामुत्पादकः प्रकाशको धर्त्ता सर्वेषु व्याप्तो जगदीश्वरोऽस्ति तमात्मना सह सततमुपासीध्वमिति ॥५॥ अत्रेन्द्रराजसूर्य्येश्वरगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिंशत्तमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, you break open the impenetrable doors of the cloud and release the rain showers. You break the adamantine mountains and let the waters flow in river courses. You break the bottomless inertness of life energy and let it flow in evolutionary channels of human action and courses of history. Creating the children of the moving world along with the sun and dawn of the day and the regions of heaven and earth, you reign supreme as light of the world, refulgent creator and ultimate dispenser.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject of king's duties - is continued.

अन्वय:

O God! giver of all great wealth, as the sun breaks up the firmness of the cloud and illuminating doors on all sides, causes rain and becomes the illuminator of all world' and men, so you engender the sun the light and dawn and pervading them destroy all misery and are the sovereign of all worlds and all men.

भावार्थभाषाः - O men ! adore or have communion with that God with your souls, who is the creator of the sun and all other objects, their illuminator, upholder and pervading all.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो सूर्य इत्यादींचा उत्पन्नकर्ता, प्रकाशक व धारक आणि संपूर्ण पदार्थांमध्ये व्याप्त जगदीश्वर आहे त्याची अंतःकरणपूर्वक उपासना करा. ॥ ५ ॥