उप॑च्छा॒यामि॑व॒ घृणे॒रग॑न्म॒ शर्म॑ ते व॒यम्। अग्ने॒ हिर॑ण्यसंदृशः ॥३८॥
upa cchāyām iva ghṛṇer aganma śarma te vayam | agne hiraṇyasaṁdṛśaḥ ||
उप॑। छा॒याम्ऽइ॑व। घृणेः॑। अग॑न्म। शर्म॑। ते॒। व॒यम्। अग्ने॑। हिर॑ण्यऽसन्दृशः ॥३८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
उपासना से शान्ति की प्राप्ति
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥
हे अग्ने ! ते तव घृणेश्छायामिव शर्म हिरण्यसन्दृशो वयमुपाऽगन्म ॥३८॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men attain is told.
O enlightened person! you are shining with knowledge like the fire, you being endowed with splendor or glittering like gold, we come to your home for shelter as we come to the shade to escape heat of the sun.
