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क्रत्वा॒ दा अ॑स्तु॒ श्रेष्ठो॒ऽद्य त्वा॑ व॒न्वन्त्सु॒रेक्णाः॑। मर्त॑ आनाश सुवृ॒क्तिम् ॥२६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kratvā dā astu śreṣṭho dya tvā vanvan surekṇāḥ | marta ānāśa suvṛktim ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्रत्वा॑। दाः। अ॒स्तु॒। श्रेष्ठः॑। अ॒द्य। त्वा॒। व॒न्वन्। सु॒ऽरेक्णाः॑। मर्तः॑। आ॒ना॒श॒। सु॒ऽवृ॒क्तिम् ॥२६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:26 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:26


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रेष्ठः) धर्मयुक्त गुण कर्म्म और स्वभाव से अतिशय युक्त (सुरेक्णाः) सुन्दर धनवाला (मर्त्तः) मनुष्य (अद्य) आज (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म्म से (सुवृक्तिम्) उत्तम प्रकार जाते हैं, दुःख जिसके द्वार उसको (आनाश) व्याप्त हो और (त्वा) आप का (वन्वन्) सेवन करता हुआ सुखी (अस्तु) हो और आप विद्या के (दाः) देनेवाले होओ ॥२६॥
भावार्थभाषाः - वे ही उत्तम जन गणनीय हैं, जो विज्ञान को देते हैं ॥२६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रेष्ठः सुरेक्णाः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (कृत्वा) = यज्ञ आदि उत्तम कर्मों के द्वारा (त्वा) = आपका (वन्वन्) = सम्भजन [उपासन] करता हुआ, (दा:) = दानशील पुरुष (अद्य) = आज (श्रेष्ठः अस्तु) = प्रशस्त [उत्तम] जीवनवाला हो । यह (सुरेक्णाः) = उत्तम धनवाला है। धन के कारण यह विलास में न फँसकर यज्ञ आदि उत्तम कर्मों को करनेवाला बने । [२] (मर्तः) = यह कर्मों द्वारा आपकी उपासना करनेवाला मनुष्य (सुवृत्तिं आनाश) = शोभनतया पापवर्जन को व्याप्त करता है। वस्तुतः यह कर्मों में लगे रहना उनके जीवन को शुद्ध बनाये रखता है, अकर्मण्यता ही पाप का कारण बनती है। यह कर्मशील पुरुष सदा सुमार्ग से ही धन का अर्जन करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- यज्ञ आदि उत्तम कर्मों के द्वारा प्रभु का सम्भजन करनेवाला मनुष्य दानशील होता है, यह श्रेष्ठ जीवनवाला व उत्तम मार्ग से धन को कमानेवाला होता है। यह पापों से बचा रहता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुषा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

श्रेष्ठः सुरेक्णा मर्त्तोऽद्य क्रत्वा सुवृक्तिमानाश त्वा वन्वन् सुख्यस्तु त्वं विद्यां दाः ॥२६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्म्मणा वा (दाः) यो ददाति (अस्तु) (श्रेष्ठः) धर्म्यगुणकर्म्मस्वभावातिशययुक्तः (अद्य) (त्वा) त्वाम् (वन्वन्) सम्भजन् (सुरेक्णाः) शोभनं रेक्णः धनं यस्य सः। रेक्ण इति धननाम। (निघं०२.१०) (मर्त्तः) मनुष्यः (आनाश) व्याप्नुयात् (सुवृक्तिम्) सुष्ठु व्रजन्ति दुःखानि यया ताम् ॥२६॥
भावार्थभाषाः - त एवोत्तमा गणनीया ये विज्ञानं प्रयच्छन्ति ॥२६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord, may the holy man of yajnic action and charity, generously giving, loving and offering homage in adoration to you, rise to eminence here and now, be master of noble wealth and follow the path of rectitude to ultimate freedom.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What should an enlightened person do is told further.

अन्वय:

May the man, possessing good wealth who with his intellect and acts, in case of misery and who is very much endowed with righteous virtues, actions and temperament and who serves you, enjoys happiness and may you impart knowledge to him.

भावार्थभाषाः - Those persons only should be considered very good, who give good knowledge to the people.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान विज्ञान शिकवितात ते माननीय समजले जातात. ॥ २६ ॥