ता राजा॑ना॒ शुचि॑व्रतादि॒त्यान्मारु॑तं ग॒णम्। वसो॒ यक्षी॒ह रोद॑सी ॥२४॥
tā rājānā śucivratādityān mārutaṁ gaṇam | vaso yakṣīha rodasī ||
ता। राजा॑ना। शुचि॑ऽव्रता। आ॒दि॒त्यान्। मारु॑तम्। ग॒णम्। वसो॒ इति॑। यक्षि॑। इ॒ह। रोद॑सी॒ इति॑ ॥२४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'मित्र, वरुण, आदित्य, मरुत् व रोदसी' से संपृक्त जीवन
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे वसो ! त्वमिह ता शुचिव्रता राजानाऽऽदित्यान् मारुतं गणं रोदसी च यक्षि ॥२४॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men do again is told.
O men! establishing others in good virtues, unite here in this world teachers and preachers who are friendly and who shine on account of knowledge, whose acts are pure, twelve months, band of thoughtful heroic men and various " objects of the (heaven and earth).
