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प्र ये जा॒ता म॑हि॒ना ये च॒ नु स्व॒यं प्र वि॒द्मना॑ ब्रु॒वत॑ एव॒याम॑रुत्। क्रत्वा॒ तद्वो॑ मरुतो॒ नाधृषे॒ शवो॑ दा॒ना म॒ह्ना तदे॑षा॒मधृ॑ष्टासो॒ नाद्र॑यः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra ye jātā mahinā ye ca nu svayam pra vidmanā bruvata evayāmarut | kratvā tad vo maruto nādhṛṣe śavo dānā mahnā tad eṣām adhṛṣṭāso nādrayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ये। जा॒ताः। म॒हि॒ना॒। ये। च॒। नु। स्व॒यम्। प्र। वि॒द्मना॑। ब्रु॒वते॑। ए॒व॒याम॑रुत्। क्रत्वा॑। तत्। वः॒। म॒रु॒तः॒। न। आ॒ऽधृषे॑। शवः॑। दा॒ना। म॒ह्ना। तत्। ए॒षा॒म्। अधृ॑ष्टासः। न। अद्र॑यः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:87» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:33» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! (ये) जो (महिना) महत्त्व से (जाताः) उत्पन्न हुए तथा (ये) जो (विद्मना) विज्ञान से (प्र, ब्रुवते) उपदेश देते हैं (च) और जो (स्वयम्) अपने से (नु) शीघ्र (प्र) विशेष करके उपदेश देते हैं और (एवयामरुत्) विज्ञानवाला मनुष्य मैं (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म्म से उन (वः) आप लोगों के (तत्) उस (शवः) बल को (दाना) देने से वा (मह्ना) महत्त्व से (न) नहीं (आधृषे) दबाने को समर्थ होता हूँ तथा (अद्रयः) मेघों के (न) समान (अधृष्टासः) नहीं धर्षण किये गये जो (एषाम्) इनका बल है (तत्) उसको नहीं दबाने को समर्थ होता हूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य सब के उपकार को करके प्राणवत् प्रिय होते हैं, वे ही जगत् के उपकार करनेवाले होते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'शक्ति विकास' व 'ज्ञानदीप्ति'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एवयामरुत्) = मार्ग पर चलनेवाला प्राणसाधक पुरुष (ब्रुवते) = उन मरुतों [प्राणों] की स्तुति करता है, (ये) = जो (मरुत् महिना) = अपनी महिमा से (प्रजाता:) = प्रकृष्ट विकासवाले हैं, जिनके द्वारा शरीर में सब शक्तियों का विकास होता है ये (च) = और जो (स्वयम्) = अपने आप (विद्मना) = ज्ञान से (प्र) [जाता:] = प्रकृष्ट प्रादुर्भाव होते हैं। प्राणसाधना के द्वारा अशुद्धियों का क्षय होकर ज्ञानदीप्ति चरमसीमा पर पहुँचकर विवेकख्याति को सिद्ध करती है। [२] हे (मरुतः) = प्राणो ! (वः तद् शवः) = आपका वह प्रसिद्ध बल (क्रत्वा) = यज्ञादि उत्तम कर्मों से युक्त हुआ हुआ (न आधृषे) = किन्हीं भी शत्रुओं से धर्षणीय नहीं होता। (तत्) = सो (एषाम्) = इन मरुतों को (दाना) = शत्रुलवन [काटना] रूप कार्य से [दाप् लवने] तथा (मह्ना) = महिमा से (अद्रयः) = प्रभु के उपासक लोग (अधृष्टासः) = न अधर्षणीय वीरों के समान होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से [१] सब शक्तियों का विकास होता है, [२] ज्ञानदीप्ति प्राप्त होती है, [३] अधर्षणीय बल की प्राप्ति होकर हम शत्रुओं से अधर्षणीय वीर बन पाते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! मनुष्या ये महिना जाता ये विद्मना प्र ब्रुवते ये च स्वयं नु प्र ब्रुवते एवयामरुदहं क्रत्वा तेषां वस्तच्छवो दाना मह्ना वा नाऽऽधृषे प्र भवामि। अद्रयो नाऽधृष्टासो यदेषां शवोऽस्ति तन्नाऽऽधृषे प्र भवामि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ये) (जाताः) उत्पन्नाः (महिना) महत्त्वेन (ये) (च) (नु) सद्यः (स्वयम्) (प्र) (विद्मना) विज्ञानेन (ब्रुवते) उपदिशन्ति (एवयामरुत्) विज्ञानवान् मनुष्यः (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (तत्) (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (न) निषेधे (आधृषे) आधर्षितुम् (शवः) बलम् (दाना) दानेन (मह्ना) महत्त्वेन (तत्) (एषाम्) (अधृष्टासः) अप्रगल्भाः (न) इव (अद्रयः) मेघाः ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्याः सर्वेषामुपकारं कृत्वा प्राणवत्प्रिया भवन्ति त एव जगदुपकारका भवन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Evayamarut, O vibrant visionary and celebrant of the Maruts, these warriors and pioneers of humanity are self-made, risen by themselves who proclaim themselves through their knowledge and self-awareness. O Maruts, stormy leaders, that power and force of yours is unchallengeable by virtue of your noble acts, grandeur and generosity. O men, their force is indomitable, they are inviolable, unshakable like mountains.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

What should the enlightened persons do is told further.

अन्वय:

O men ! a man of learning can not subdue the strength with my knowledge or action by donation or glory (greatness) of those of you who are manifest with greatness and who teach us well with true knowledge. I can not overcome the might of those who are motionless ((firm in their determination) like the mountains or clouds.

भावार्थभाषाः - Those men who are dear to men like their breaths, and having done good (to all, are real benefactors of the world.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे सर्वांवर उपकार करून प्राणाप्रमाणे प्रिय बनतात ती जगावर उपकार करणारी असतात. ॥ २ ॥