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या पृत॑नासु दु॒ष्टरा॒ या वाजे॑षु श्र॒वाय्या॑। या पञ्च॑ चर्ष॒णीर॒भी॑न्द्रा॒ग्नी ता ह॑वामहे ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā pṛtanāsu duṣṭarā yā vājeṣu śravāyyā | yā pañca carṣaṇīr abhīndrāgnī tā havāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। पृत॑नासु। दु॒स्तरा॑। या। वाजे॑षु। श्र॒वाय्या॑। या। पञ्च॑। च॒र्ष॒णीः। अ॒भि। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। ता। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:86» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:32» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान वर्त्तमान सेनापति और अध्यक्ष ! (या) जो सेना के शिक्षक और लड़ानेवाले (पृतनासु) सेनाओं में (दुष्टरा) दुःख से उल्लङ्घन करने योग्य (या) जो (वाजेषु) अन्नादिकों वा संग्रामों में (श्रवाय्या) प्रशंसा करने योग्य (या) जो (पञ्च) पाँच (चर्षणीः) प्राणों वा मनुष्यों को (अभि) सम्मुख रक्षा करते हैं (ता) उन दोनों को हम लोग (हवामहे) स्वीकार करें वा प्रशंसा करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - राजा और सेनापति को चाहिये कि उत्तम प्रकार परीक्षा करके सेना के अध्यक्ष भृत्यों को रक्खें, जिससे सर्वदा विजय होवे ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दुष्टरा- श्रवाय्या

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (या) = जो इन्द्र और (अग्नि) = बल व प्रकाश के देवता (पृतनासु) = संग्रामों में (दुष्टरा) = शत्रुओं से अभिभूत होने योग्य नहीं और (या) = जो (वाजेषु) = बलों में (श्रवाय्या) = प्रशंसनीय हैं, (ता) = उन (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के देवों को (हवामहे) = हम पुकारते हैं। इनकी आराधना हमें संग्रामों में विजयी व प्रशंसनीय बलवाला बनाती है । [२] ये इन्द्र और अग्नि वे हैं (या) = जो (पञ्च) = पाँचों (चर्षणी:) = अभि [चर्षणि=seeing, moving] ज्ञानों व कर्मों के प्रति हमें प्रेरित करते हैं। इन इन्द्र और अग्नि की उपासना से पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ भी ठीक बनी रहती हैं और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ भी सशक्त होती हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- इन्द्र और अग्नि का आराधन हमें [१] संग्रामों में विजयी बनाता है, [२] प्रशस्त शक्तिवाला करता है तथा [३] ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को अपने व्यापारों में ठीक से प्रेरित रखता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी वायुविद्युद्वद्वर्त्तमानौ सेनापत्यध्यक्षौ ! या पृतनासु दुष्टरा या वाजेषु श्रवाय्या या पञ्च चर्षणीरभि रक्षतस्ता वयं हवामहे ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) यौ सेनाशिक्षकयोधयितारौ (पृतनासु) सेनासु (दुष्टरा) दुःखेन तरितुमुल्लङ्घयितुं योग्यौ (या) (वाजेषु) अन्नादिषु सङ्ग्रामेषु वा (श्रवाय्या) प्रशंसनीयौ (या) (पञ्च) (चर्षणीः) प्राणान् मनुष्यान् वा (अभि) अभिमुख्ये (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव (ता) तौ (हवामहे) स्वीकुर्य्याम प्रशंसेम वा ॥२॥
भावार्थभाषाः - नरेशसेनापतिभ्यां सुपरीक्ष्य सेनायामध्यक्षा भृत्याः संरक्षणीया यतस्सर्वदा विजयः सम्भवेत् ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We adore and solicit Indra and Agni which, among the forces of life, are indomitable, in the battles for power and prosperity, admirable, and among the five orders of society and among the five pranic energies are of prime importance.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties of scholars are mentioned.

अन्वय:

We accept or admire chief of the Commander of the army and the President of the State. They are like the air and energy invincible in war, worthy to be praised in battles and on the occasion of distribution of food among the needy. They protect five Pranas or five classes of men.

भावार्थभाषाः - The king and Chief Commander of the Army should appoint chiefs of the army, servants and others after testing them thoroughly, so that there may always be victory over the foes.
टिप्पणी: चर्षणय इति मनुष्यनाम (NG 2, 3) पुतना इति मनुष्यनाम | पचर्षणयः पंच जना चत्वारो वर्णा निषादः पंचम इति (NKT 3, 2, 8) । चर्षणिरिति पदनाम (NG 4, 2) तेन सुखप्रापकप्राणानामधिग्रहणम् । पूतना इति मनुष्यनाम (NG 2, 3) अत्र वीरमनुष्यनिर्मित सेनार्थ ग्रहणम् ।
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व सेनापती यांनी उत्तम परीक्षा करून सेनाध्यक्ष व सेवक नेमावेत ज्यामुळे सदैव विजय प्राप्त व्हावा. ॥ २ ॥