प्र स॒म्राजे॑ बृ॒हद॑र्चा गभी॒रं ब्रह्म॑ प्रि॒यं वरु॑णाय श्रु॒ताय॑। वि यो ज॒घान॑ शमि॒तेव॒ चर्मो॑प॒स्तिरे॑ पृथि॒वीं सूर्या॑य ॥१॥
pra samrāje bṛhad arcā gabhīram brahma priyaṁ varuṇāya śrutāya | vi yo jaghāna śamiteva carmopastire pṛthivīṁ sūryāya ||
प्र। स॒म्ऽराजे॑। बृ॒हत्। अ॒र्च॒। ग॒भी॒रम्। ब्रह्म॑। प्रि॒यम्। वरु॑णाय। श्रु॒ताय॑। वि। यः। ज॒घान॑। श॒मि॒ताऽइ॑व। चर्म॑। उ॒प॒ऽस्तिरे॑। पृ॒थि॒वीम्। सूर्या॑य ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले पचासीवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'सम्राट् वरुण श्रुत' प्रभु
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे मनुष्य ! यः सवितेव दुष्टान् वि जघान सूर्य्यायोपस्तिरे चर्म पृथिवीं शमितेव प्राप्नोति तथा त्वं वरुणाय श्रुताय सम्राजे बृहद्गभीरं प्रियं ब्रह्म प्रार्चा ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men do is told.
O man! honor a renowned noble king who shines like the sun on account of his virtues, with offer of abundant dear wealth or food (likeable. Ed.) kills the wicked like the sun (dispelling darkness) like a man who performs peace living Yajna covers the ground with the Asana (seat) made of leather (of a dear) मृगचर्म।
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात राजा, ईश्वर, मेघ व विद्वानांच्या गुुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
