बळि॒त्था पर्व॑तानां खि॒द्रं बि॑भर्षि पृथिवि। प्र या भूमिं॑ प्रवत्वति म॒ह्ना जि॒नोषि॑ महिनि ॥१॥
baḻ itthā parvatānāṁ khidram bibharṣi pṛthivi | pra yā bhūmim pravatvati mahnā jinoṣi mahini ||
बट्। इ॒त्था। पर्व॑तानाम्। खि॒द्रम्। बि॒भ॒र्षि॒। पृ॒थि॒वि॒। प्र। या। भूमि॑म्। प्र॒व॒त्व॒ति॒। म॒ह्ना। जि॒नोषि॑। म॒हि॒नि॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब तीन ऋचावाले चौरासीवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
पर्वत- खेदन
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे प्रवत्वति महिनि पृथिवीव वर्त्तमाने ! या त्वं पर्वतानां मह्ना भूमिं धरसीत्था बट् सत्यं यतो बिभर्षि खिद्रं प्र जिनोषि तस्मात् सत्कर्त्तव्याऽसि ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men do is told.
O learned and respectable lady! for bearing nature like the earth, which contains some low regions also, you uphold the earth by the greatness of the clouds and in this manner uphold the truth and destroy poverty. Therefore you are worthy of honor.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात मेघ, विद्वान व स्त्रीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.
