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अच्छा॑ वद त॒वसं॑ गी॒र्भिरा॒भिः स्तु॒हि प॒र्जन्यं॒ नम॒सा वि॑वास। कनि॑क्रदद्वृष॒भो जी॒रदा॑नू॒ रेतो॑ दधा॒त्योष॑धीषु॒ गर्भ॑म् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

acchā vada tavasaṁ gīrbhir ābhiḥ stuhi parjanyaṁ namasā vivāsa | kanikradad vṛṣabho jīradānū reto dadhāty oṣadhīṣu garbham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अच्छ॑। व॒द॒। त॒वस॑म्। गीः॒ऽभिः। आ॒भिः। स्तु॒हि। प॒र्जन्य॑म्। नम॑सा। आ। वि॒वा॒स॒। कनि॑क्रदत्। वृ॒ष॒भः। जी॒रऽदा॑नुः। रेतः॑। द॒धा॒ति॒। ओष॑धीषु। गर्भ॑म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:83» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब दश ऋचावाले तिरासीवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मेघ कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जो (वृषभः) थूहेवाले बैल के सदृश (जीरदानुः) जीवानेवाला (कनिक्रदत्) शब्द करता हुआ (नमसा) अन्न आदि के साथ (आ, विवास) सब ओर से बसता और (ओषधीषु) ओषधियों में (रेतः) जल रूप (गर्भम्) गर्भ को (दधाति) धारण करता है उस (पर्जन्यम्) मेघ को (आभिः) इन वर्त्तमान (गीर्भिः) वाणियों से (अच्छा) उत्तम प्रकार (वद) कहिये और (तवसम्) बल की (स्तुहि) प्रशंसा करिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों से मेघविद्या का यथावत् विज्ञान करें ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'पर्जन्य-स्तवन'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (आभिः गीर्भिः) = इन ज्ञान की वाणियों के द्वारा (तवसं अच्छा वद्) = उस शक्तिशाली प्रभु के प्रति स्तुतिवचनों का उच्चारण कर । ज्ञानपूर्वक प्रभु के स्तोत्रों को तू बोलनेवाला हो। उस (पर्जन्यम्) = [परो जेता नि०] महान् विजेता प्रभु का (स्तुहि) = तू स्तवन कर । (नमसा) = नमन के द्वारा (आ विवास) = उस प्रभु की परिचर्यावाला हो। [२] (कनिक्रदद्) = ऋग्, यजु, सामरूप वाणियों का उच्चारण करनेवाले, (वृषभ:) = सब सुखों का वर्षण करनेवाले वे प्रभु हैं। (जीरदानुः) = शीघ्रता से सब आवश्यक पदार्थों को देनेवाले वे प्रभु रेतः (दधाति) = हमारे लिये रेतः कणों का, वीर्यकणों का धारण करते हैं। उन वीर्यकणों को धारण करते हैं, जो (ओषधीषु) = ओषधियों में (गर्भम्) = गर्भरूप से रहते हैं। ओषधियों का हम सेवन करते हैं और उनसे रस-रुधिर आदि क्रम से इन रेतः कणों की उत्पत्ति होती है। वे
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु का ज्ञान की वाणियों व नम्रता से स्तवन करें। वे महान् विजेता प्रभु हमारे लिये इन ज्ञानवाणियों का उच्चारण करते हैं, हमें जीवन देते हैं और ओषधियों द्वारा हमें जीवनीशक्ति [रेतः कणों] को प्राप्त कराते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मेघः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यो वृषभ इव जीरदानुः कनिक्रदन्नमसाऽऽविवासौषधीषु रेतो गर्भं दधाति तं पर्जन्यमाभिर्गीर्भिरच्छा वद तवसं च स्तुहि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वद) (तवसम्) बलम् (गीर्भिः) वाग्भिः (आभिः) वर्त्तमानाभिः (स्तुहि) प्रशंस (पर्जन्यम्) मेघम् (नमसा) अन्नाद्येन (आ) (विवास) विवसति (कनिक्रदत्) शब्दयन् (वृषभः) बलीवर्द इव (जीरदानुः) यो जीवयति (रेतः) उदकम्। रेत इत्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (दधाति) (ओषधीषु) (गर्भम्) ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्विद्वद्भ्यो मेघविद्या यथावद्विज्ञातव्या ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Hail the mighty cloud well with these holy words of song, serve, celebrate and energise it with homage in yajna for peace and a happy home. Roaring and thundering with passion, the virile cloud, giver of life and freshness, impregnates the herbs with the seed of generation.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The nature of cloud is told.

अन्वय:

O learned person ! praise the mighty cloud which is like the bell, giver of life, thundered, the showerer, and the beautiful, which impregnates the plants with rains. Praise it with these good words as it causes (enables. Ed.) us to live in this world with the food materials produced by it.

भावार्थभाषाः - Men should acquire the knowledge of the properties of cloud from the highly learned persons-great scientists.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात मेघ व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - माणसांनी विद्वानांकडून मेघविद्या जाणून घ्यावी. ॥ १ ॥