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अ॒द्या नो॑ देव सवितः प्र॒जाव॑त्सावीः॒ सौभ॑गम्। परा॑ दुः॒ष्वप्न्यं॑ सुव ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adyā no deva savitaḥ prajāvat sāvīḥ saubhagam | parā duṣṣvapnyaṁ suva ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒द्य। नः॒। दे॒व॒। स॒वि॒त॒रिति॑। प्र॒जाऽव॑त्। सा॒वीः॒। सौभग॑म्। परा॑। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। सु॒व॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:82» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सवितः) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य के देनेवाले स्वामिन् (देव) शोभित ! आप कृपा से (नः) हम लोगों के लिये वा हम लोगों के (अद्या) आज (प्रजावत्) बहुत प्रजायें विद्यमान जिसके उस (सौभगम्) सुन्दर ऐश्वर्य के भाग को (सावीः) उत्पन्न कीजिये और (दुःष्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्नों में उत्पन्न दुःख को (परा, सुव) दूर कीजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो परमेश्वर की प्रार्थना करके धर्म्मयुक्त पुरुषार्थ करते हैं, वे बहुत ऐश्वर्य्यवाले होकर दुःख और दारिद्र्य से रहित होते हैं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रजावत् सौभग की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (देव) = प्रकाशमय (सवितः) = सर्वोत्पादक सर्वप्रेरक प्रभो ! (अद्या) = आज (नः) = हमारे लिये (प्रजावत्) = प्रकृष्ट सन्तानोंवाले (सौभगम्) = सौभाग्य कर धन को (सावीः) = उत्पन्न करिये । हमें ऐसा धन दीजिये जो हमारे घरों में किसी प्रकार के विलास का कारण न बने और हमारे सन्तानों के चरित्र को उत्तम ही बनाये। [२] (दुःष्वप्न्यम्) = अशुभ स्वप्नों के कारणभूत अथवा नींद को भी नष्ट करनेवाले दारिद्र्य को (परासुव) = हमारे से दूर करिये। ऐसी गरीबी भी पाप ही है जो नींद को भी न लेने दे। ऐसी गरीबी अन्ततः एक गृहस्थ की 'महानिद्रा' का ही कारण बनती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें प्रकृष्ट सन्तानोंवाला ऐश्वर्य प्राप्त हो और हमारे से दारिद्र्य सदा दूर ही रहे।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सवितर्देव ! त्वं कृपया नोऽद्या प्रजावत्सौभगं सावीर्दुःष्वप्न्यं परा सुव दूरं गमय ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्या) अद्य। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यमस्माकं वा (देव) प्रकाशमान (सवितः) सर्वैश्वर्य्यप्रदेश्वर (प्रजावत्) बह्व्यः प्रजा विद्यन्ते यस्य तत् (सावीः) जनय (सौभगम्) शौभनैश्वर्य्यस्य भागम् (परा) (दुःष्वप्न्यम्) दुष्टेषु स्वप्नेषु भवं दुःखम् (सुव) प्रेरय ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये परमेश्वरं प्रार्थयित्वा धर्म्यं पुरुषार्थं कुर्वन्ति ते महदैश्वर्या भूत्वा दुःखदारिद्र्यविरहा जायन्ते ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O generous lord Savita, create for us here and now honour and good fortune full of noble people and progeny. Drive away bad dreams and ward off dreamy ambitions.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The greatness of God is highlighted.

अन्वय:

O Resplendent God ! you are giver of all wealth. Give us this day ( now Ed) prosperity with noble progeny. Drive away all misery or suffering caused due to evil dreams, (thoughts. Ed.)

भावार्थभाषाः - Those who after praying to God, exert themselves righteously, become prosperous and free from all misery and poverty.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे परमेश्वराची प्रार्थना करून धर्मयुक्त पुरुषार्थ करतात. ते अत्यंत ऐश्वर्यवान होऊन दुःख व दारिद्र्यरहित होतात. ॥ ४ ॥