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ए॒षा जनं॑ दर्श॒ता बो॒धय॑न्ती सु॒गान्प॒थः कृ॑ण्व॒ती या॒त्यग्रे॑। बृ॒ह॒द्र॒था बृ॑ह॒ती वि॑श्वमि॒न्वोषा ज्योति॑र्यच्छ॒त्यग्रे॒ अह्ना॑म् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣā janaṁ darśatā bodhayantī sugān pathaḥ kṛṇvatī yāty agre | bṛhadrathā bṛhatī viśvaminvoṣā jyotir yacchaty agre ahnām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षा। जन॑म्। द॒र्श॒ता। बो॒धय॑न्ती। सु॒ऽगान्। प॒थः। कृ॒ण्व॒ती। या॒ति॒। अग्रे॑। बृ॒ह॒त्ऽर॒था। बृ॒ह॒ती। वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वा। उ॒षाः। ज्योतिः॑। य॒च्छ॒ति॒। अग्रे॑। अह्ना॑म् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:80» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे उत्तम स्वभाववाली स्त्रियो ! जैसे (एषा) यह (बृहद्रथा) बड़े रथ जिसके ऐसी (बृहती) बड़ी (विश्वमिन्वा) संपूर्ण जगत् को प्रक्षेप करती अलग करती और (जनम्) मनुष्य को और (दर्शता) देखने योग्य भूमियों को (बोधयन्ती) जनाती हुई (सुगान्) सुखपूर्वक जिनमें चलें उन (पथः) मार्गों को (कृण्वती) प्रकाशित करती हुई (उषाः) प्रातर्वेला (अग्रे) दिन से आगे (याति) चलती है और (अह्नाम्) दिनों के (अग्रे) पहिले से (ज्योतिः) प्रकाश को (यच्छति) देती है, वैसे तुम होओ ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्रियाँ प्रभातवेला के सदृश अपने पति आदि को सूर्य्योदय से पहिले जगातीं, गृह और बाहर के मार्गों को साफ करतीं, आते हुए पतियों के हाथ जोड़ के आगे खड़ी होतीं और सब काल में विज्ञान को देती हैं, वे ही देश और कुल को शोभन करनेवाली हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सत्पथ प्रवृत्ति-शक्ति- ज्योति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एषा) = यह (दर्शता) = दर्शनीय उषा (जनं बोधयन्ती) = सोये हुए जनों को प्रबुद्ध करती हुई और (पथ:) = मार्गों को (सुगान्) = सुगमता से जाने योग्य (कृण्वती) = करती हुई (अग्रे याति) = आगे बढ़ती है। उषा जागने की प्रेरणा देती है, सत्पथ पर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती हुई चलती है। [२] यह (बृहद्रथा) = बढ़ी हुई शक्तियोंवाले शरीर-रथवाली, बृहती वृद्धि की कारणभूत (उषा) = उषा (विश्वमिन्वा) = [ इन्व invigorate, gladden] सबको शक्तिशाली बनाती हुई (अह्रां अग्रे) = दिन के अग्रभाग में ही (ज्योतिः यच्छति) प्रकाश को देती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- उषा हमें सत्पथ प्रवृत्त करती है, शक्तिशाली बनाती है और ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त कराती है। मन सत्पथ की रुचिवाला, शरीर शक्तिवाला व मस्तिष्क ज्ञान के प्रकाशवाला इस उषा से ही बनता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सुशीलाः स्त्रियो ! यथैषा बृहद्रथा बृहती विश्वमिन्वा जनं दर्शता बोधयन्ती सुगान् पथः कृण्वत्युषा अग्रे यात्यह्नामग्रे ज्योतिर्यच्छति तथा यूयं भवत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एषा) (जनम्) (दर्शता) द्रष्टव्या भूमीः (बोधयन्ती) (सुगान्) सुखेन गच्छन्ति येषु तान् (पथः) मार्गान् (कृण्वती) प्रकाशं कुर्वती (याति) गच्छति (अग्रे) दिवसात्पुरः (बृहद्रथा) महान्तो रथा यस्याः सा (बृहती) महती (विश्वमिन्वा) या विश्वं सर्वं जगन्मिनोति (उषाः) प्रातर्वेला (ज्योतिः) प्रकाशम् (यच्छति) ददाति (अग्रे) प्रथमतः (अह्नाम्) दिवसानाम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । याः स्त्रियः प्रभातवेलावत्स्वकीयान् पत्यादीन् सूर्योदयात्प्राक् चेतयन्त्यो गृहस्थान् बाह्यांश्च मार्गांश्छोधयन्त्य आगच्छतां पत्यादीनां कृताञ्जलयोऽग्रे तिष्ठन्ति सर्वदा विज्ञानं च प्रयच्छन्ति ता एव देशकुलभूषणानि भवन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - This glorious dawn, vast and great, goes forward riding her mighty chariot, arousing humanity from sleep, lighting up easy paths for movement, all illuminative, giving light in advance of the day.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject of attributes of women is continued.

अन्वय:

O good ladies! this fair dawn has many chariots or charming forms or appearances (overcomes the dispeller of darkness) and rouses up the people of the world. Showing them the worth-seeing earth and other things, and making the pathways easy to be travelled, the dawn goes in front, (advance. Ed.) giving the splendor at day's beginning. So you should also become.

भावार्थभाषाः - The women who awaken their husbands before the sunrise, cleaning the paths (floors, corners and walls Ed.) of the house, stand before their husbands with folded hands and give good knowledge to all, are the ornaments (real jewels. Ed.) of the country and the family.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या स्त्रिया प्रभातवेळी आपल्या पती इत्यादींना सूर्योदयापूर्वी जागे करतात. घराचे व बाहेरचे मार्ग स्वच्छ करतात. पती बाहेरून येताच त्याचे स्वागत करतात व सर्व काळी विज्ञान देतात. त्याच देशाला व कुलाला सुशोभित करतात. ॥ २ ॥