म॒हे नो॑ अ॒द्य बो॑ध॒योषो॑ रा॒ये दि॒वित्म॑ती। यथा॑ चिन्नो॒ अबो॑धयः स॒त्यश्र॑वसि वा॒य्ये सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥१॥
mahe no adya bodhayoṣo rāye divitmatī | yathā cin no abodhayaḥ satyaśravasi vāyye sujāte aśvasūnṛte ||
म॒हे। नः॒। अ॒द्य। बो॒ध॒य॒। उषः॑। रा॒ये। दि॒वित्म॑ती। यथा॑। चि॒त्। नः॒। अबो॑धयः। स॒त्यऽश्र॑वसि। वा॒य्ये। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब दश ऋचावाले उनासीवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में स्त्री कैसी हो, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
महान् ऐश्वर्य की प्राप्ति -
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ स्त्री कीदृशी भवेदित्याह ॥
हे उषर्वद्वर्त्तमाने वाय्ये सुजातेऽश्वसूनृते स्त्रि ! यथा दिवित्मत्युषा महे राये बोधयति तथाऽद्य नो बोधय चिदपि सत्यश्रवसि नोऽस्मानबोधयः ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
An ideal woman is described.
O wife! you are like the dawn, to be extended like the thread in the form of progeny, well-born (born in a noble family), great utterer of true and sweet words like the dawn which is full of light. Awaken us for great wealth, and enlighten us today. Enlighten us for the hearing (receiving. Ed.) of truth and good food.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात प्रातःकाल व स्त्रीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.
