प्रति॑ प्रि॒यत॑मं॒ रथं॒ वृष॑णं वसु॒वाह॑नम्। स्तो॒ता वा॑मश्विना॒वृषिः॒ स्तोमे॑न॒ प्रति॑ भूषति॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥१॥
prati priyatamaṁ rathaṁ vṛṣaṇaṁ vasuvāhanam | stotā vām aśvināv ṛṣiḥ stomena prati bhūṣati mādhvī mama śrutaṁ havam ||
प्रति॑। प्रि॒यऽत॑मम्। रथ॑म्। वृष॑णम्। व॒सु॒ऽवाह॑नम्। स्तो॒ता। वा॒म्। अ॒श्वि॒नौ॒। ऋषिः॑। स्तोमे॑न। प्रति॑। भू॒ष॒ति॒। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब नव ऋचावाले पचहत्तरवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'प्रियतम-वसुवाहन' रथ
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे माध्वी अश्विनौ ! यः स्तोता ऋषिः स्तोमेन वां प्रियतमं वृषणं वसुवाहनं रथं प्रति भूषति तस्य मम च हवं प्रति श्रुतम् ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should the enlightened persons do is told.
O teacher and examiner ! you convey the sweetness and other's virtues. Listen to my invocation and of the knower of the meaning of the mantras, and also of an admirer who decorates you with praise and leads you to the vehicle, like the aircraft which carries many articles (goods. Ed.). It is very dear and showerer of joys.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अश्विपदवाच्य विद्वान स्त्री-पुरुषांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
