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व्र॒तेन॑ स्थो ध्रु॒वक्षे॑मा॒ धर्म॑णा यात॒यज्ज॑ना। नि ब॒र्हिषि॑ सदतं॒ सोम॑पीतये ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vratena stho dhruvakṣemā dharmaṇā yātayajjanā | ni barhiṣi sadataṁ somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व्र॒तेन॑। स्थः॒। ध्रु॒वऽक्षे॑मा। धर्म॑णा। या॒त॒यत्ऽज॑ना। नि। ब॒र्हिषि॑। स॒द॒त॒म्। सोम॑ऽपीतये ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:72» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ध्रुवक्षेमा) निश्चित रक्षण और (यातयज्जना) यत्न कराते हुए जनोंवाले मनुष्यो ! जो तुम (धर्म्मणा) धर्म्म के और (व्रतेन) धर्म्मयुक्त कर्म्म के साथ वर्त्तमान (स्थः) होते हो वे दोनों आप (सोमपीतये) सोम पीने के लिये (बर्हिषि) उत्तम व्यवहार में (नि, सदतम्) उपस्थित हूजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य निश्चित धर्म्म व्रत और शील को धारण करते हैं, वे दृढ़ सुख से युक्त होते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ध्रुवक्षेमा-यातयज्जना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे मित्र और वरुण, स्नेह व निद्वेषता के भावो! आप (व्रतेन) = पुण्य कर्मों से (ध्रुवक्षेमा) = निश्चित कल्याण करनेवाले हो । स्नेह के होने पर हम अशुभ हिंसादि कर्मों में प्रवृत्त नहीं होते। [२] आप (धर्मणा) = धारणात्मक कर्मों के हेतु से ही (यातयज्जना) = लोगों को कर्मों में प्रवृत्त करते हो । सो आप (सोमपीतये) = सोम के रक्षण के लिये (बर्हिषि) = हमारे वासनाशून्य हृदयों में (निसदतम्) = आसीन होवो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-मित्र व वरुण का उपासक पुण्य कर्मों द्वारा कल्याण करनेवाला व धारणात्मक कर्मों में ही प्रवृत्त होनेवाला होता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे ध्रुवक्षेमा यातयज्जना ! यौ युवां धर्म्मणा व्रतेन स्थस्तौ सोमपीतये बर्हिषि निषदतम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (व्रतेन) धर्मयुक्तेन कर्म्मणा (स्थः) भवथः (ध्रुवक्षेमा) ध्रुवं क्षेमं रक्षणं ययोस्तौ (धर्म्मणा) धर्म्मेण सह वर्त्तमानौ (यातयज्जना) यातयन्तो जना ययोस्तौ (नि) (बर्हिषि) उत्तमे व्यवहारे (सदतम्) तिष्ठतम् (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या निश्चितधर्मव्रतशीलानि धरन्ति ते स्थिरसुखा जायन्ते ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O constant protectors of achievement and progress, unshakable leaders dynamic at the centre of movement, dedicated to the vows of piety, guides of the people on the march forward and onward by the laws of Dharma, come, grace the seats of yajna in the world order and drink the soma of success and advancement.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How should men behave is told further.

अन्वय:

You who dwell in peace, secure or abide (whose protection is secure) in happiness by the acts performance in accordance with the Dharma and who are the best among the men making them industrious by the observance of Dharma. Let them be seated in a good house or on a good Asana to drink Soma juice.

भावार्थभाषाः - Those persons who uphold Dharma, vows and good character and conduct, enjoy abiding happiness.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे निश्चितपणे धर्माचे व्रत व शील संपादित करतात ती दृढ सुख प्राप्त करतात. ॥ २ ॥