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शुचिः॑ ष्म॒ यस्मा॑ अत्रि॒वत्प्र स्वधि॑तीव॒ रीय॑ते। सु॒षूर॑सूत मा॒ता क्रा॒णा यदा॑न॒शे भग॑म् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śuciḥ ṣma yasmā atrivat pra svadhitīva rīyate | suṣūr asūta mātā krāṇā yad ānaśe bhagam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शुचिः॑। स्म॒। यस्मै॑। अ॒त्रि॒ऽवत्। प्र। स्वधि॑तिःऽइव। रीय॑ते। सु॒ऽसूः। अ॒सू॒त॒। मा॒ता। क्रा॒णा। यत्। आ॒न॒शे। भग॑म् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:7» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजशिक्षा विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (शुचिः) पवित्र (क्राणाः) करती हुई (माता) माता (यस्मै) जिसके लिये (स्वधितीव) वज्र के धारण करनेवाले के सदृश और (अत्रिवत्) अविद्यमान तीनवाले के सदृश (सुषूः) उत्तम प्रकार उत्पन्न करनेवाली (असूत) उत्पन्न करती और (प्र, रीयते) मिलती है (स्म) वही (भगम्) ऐश्वर्य्य को (आनशे) प्राप्त होती है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो माता-पिता ब्रह्मचर्य्य किये हुए विधिपूर्वक सन्तानों को उत्पन्न करें तो सुख और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होवें ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उपासना व स्वाध्याय

पदार्थान्वयभाषाः - [१] वह व्यक्ति (शुचिः) = पवित्र बनता है, (यस्मै) = जिसके लिये वे प्रभु (अत्रिवत्) = [अत्ति इति अत्रिः] सब वासनाओं को दग्ध करनेवाले के समान और (स्वधिति इव) = वासनाओं के वृक्षों को काटनेवाले परशु के समान (प्र रीयते स्म) = प्रकर्षेण प्राप्त होते हैं। उपासक के जीवन को प्रभु पवित्र कर डालते हैं। [२] (माता) = वेदमाता भी (सुषूः) = उत्तम भावों को जन्म देनेवाली होती हुई (असूत) = इसके जीवन में दिव्य गुणों को जन्म देती है, (यत्) = जब कि (भगम्) = ऐश्वर्य को (क्राणा) = [कुर्वाणा] करती हुई (आनशे) = इसके जीवन में व्याप्त होती है। वेदमाता ऐश्वर्य को उत्पन्न करती हुई इस उपासक को दिव्य गुणोंवाला बनाती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ध्यान से सब वासनाएँ विनष्ट होती हैं। वेद के स्वाध्याय से, ज्ञान की उपासना से सब दिव्य गुणों का ऐश्वर्य प्राप्त होता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजशासनविषयमाह ॥

अन्वय:

यद्या शुचिः क्राणा माता यस्मै स्वधितीवात्रिवत्सुषूरसूत प्र रीयते सा स्म भगमानशे ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुचिः) पवित्रः (स्म) (यस्मै) (अत्रिवत्) (प्र) (स्वधितीव) वज्रधर इव (रीयते) श्लिष्यति (सुषूः) सुष्ठु जनयित्री (असूत) सूते (माता) जननी (क्राणा) कुर्वती (यत्) या (आनशे) प्राप्नोति (भगम्) ऐश्वर्य्यम् ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यदि मातापितरौ कृतब्रह्मचर्य्यौ विधिवत्सन्तानानुत्पादयेतां तर्हि सुखैश्वर्य्यं लभेताम् ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - For him, i.e., the supplicant yajaka, the man free from threefold suffering of body, mind and soul, Agni, bright and pure, releases the honour and splendour of life like currents of thunder power, which mother nature spontaneously generates for him and which flows to him incessantly.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Something about the proper administrator of the State is stated.

अन्वय:

A mother, performing good deeds gives birth to a son, who is like a brave upholder of the thunderbolt, or is like the fatal weapons or who is like a man free from the sufferings of three kinds (worldly, divine or spiritual. Ed.). She and her husband whom she loves intensely and for whose delight she delivers provide much happiness and prosperity.

भावार्थभाषाः - If parents generate children according to the Vedic injunctions after completing Brahmacharya, they may enjoy happiness and prosperity.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे माता-पिता ब्रह्मचर्यपूर्वक व विधिपूर्वक संतानांना उत्पन्न करतात त्यांना सुख व ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ८ ॥