वांछित मन्त्र चुनें

ता नः॑ शक्तं॒ पार्थि॑वस्य म॒हो रा॒यो दि॒व्यस्य॑। महि॑ वां क्ष॒त्रं दे॒वेषु॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā naḥ śaktam pārthivasya maho rāyo divyasya | mahi vāṁ kṣatraṁ deveṣu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। नः॒। श॒क्त॒म्। पार्थि॑वस्य। म॒हः। रा॒यः। दि॒व्यस्य॑। महि॑। वा॒म्। क्ष॒त्रम्। दे॒वेषु॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:68» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:3


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राज्य कैसे उन्नति को प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (नः) हम लोगों के सम्बन्ध में (पार्थिवस्य) पृथिवी में विदित (महः) बड़े (रायः) धन के और (दिव्यस्य) शुद्ध व्यवहार में हुए का (शक्तम्) समर्थ, जिन (वाम्) आप दोनों का (देवेषु) सत्य विद्या को प्राप्त हुओं में (महि) बड़ा (क्षत्रम्) राज्य वा धन वर्त्तमान है (ता) उन आप दोनों का हम लोग सत्कार करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषो ! आप लोग जो अपने राज्य वा विद्वानों से रक्षा करें तो वह पृथिवी में विदित हुआ समर्थ होवे ॥३॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'दिव्य व पार्थिव' ऐश्वर्य

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ता) = वे दोनों मित्र और वरुण (नः) = हमारे लिये (पार्थिवस्य) = शरीररूप पृथिवी-सम्बन्धी (महः रायः) = महत्त्वपूर्ण ऐश्वर्य के, अर्थात् शक्ति के तथा (दिव्यस्य) = मस्तिष्करूपी द्युलोक सम्बन्धी महान् ऐश्वर्य, अर्थात् ज्ञान के (शक्तम्) = देने में समर्थ हैं। स्नेह व निर्देषता से शरीर में शक्ति व मस्तिष्क में ज्ञान का संचार होता है । [२] (वाम्) = आप दोनों का, स्नेह व निर्दोषता का (देवेषु) = सब देववृत्ति के पुरुषों में (महिक्षत्रम्) = महनीय बल होता है। सब देव इन्हीं से बल-सम्पन्न बनते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- स्नेह व निर्देषता से ही शक्ति व ज्ञान की प्राप्त भी होती है।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्यं कथमुन्नेयमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! [यो] नः पार्थिवस्य महो रायो दिव्यस्य शक्तं ययोर्वां देवेषु महि क्षत्रं वर्त्तते ता युवां वयं सत्कुर्य्याम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (नः) अस्माकम् (शक्तम्) समर्थम् (पार्थिवस्य) पृथिव्यां विदितस्य (महः) महतः (रायः) धनस्य (दिव्यस्य) दिवि शुद्धे व्यवहारे भवस्य (महि) महत् (वाम्) युवयोः (क्षत्रम्) राज्यं धन वा (देवेषु) सत्यविद्यां प्राप्तेषु ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषा ! युष्माभिर्यदि स्वं राज्यं विद्वद्भी रक्ष्येत तर्हि तत्पृथिव्यां विदितं समर्थं जायेत ॥३॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Great is your power and potential for us over the wealth and excellence of heavenly and earthly values, culture and conduct and behaviour. Great is your rule and order over the divinities of nature and humanity.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

How should the State be developed is told.

अन्वय:

O men ! help us to attain the wealth, that is well-known on the earth (because of being honestly earned. Ed.) and that which is achieved by pure conduct. Great is your kingdom or wealth among the enlightened persons.

भावार्थभाषाः - O officers of the State! if you get your kingdom protected by the enlightened persons, it may then become well famous on earth and very (efficiently run. Ed.)
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजपुरुषांनो! तुम्ही आपल्या राज्याच्या विद्वानांचे रक्षण केल्यास पृथ्वीवर प्रसिद्ध होऊन समर्थ व्हाल. ॥ ३ ॥