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युवा॒ स मारु॑तो ग॒णस्त्वे॒षर॑थो॒ अने॑द्यः। शु॒भं॒यावाप्र॑तिष्कुतः ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvā sa māruto gaṇas tveṣaratho anedyaḥ | śubhaṁyāvāpratiṣkutaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

युवा॑। सः। मारु॑तः। ग॒णः। त्वे॒षऽर॑थः। अने॑द्यः। शु॒भ॒म्ऽयावा॑। अप्र॑तिऽस्कुतः ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री-पुरुष के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अनेद्यः) नहीं निन्दा करने योग्य (त्वेषरथः) प्रकाशवान् वाहन जिसका वह (शुभंयावा) जल को प्राप्त होनेवाला (अप्रतिष्कुतः) नहीं कम्पित दृढ़ (युवा) यौवनावस्था को प्राप्त (मारुतः) पवनों के समूह के सदृश मनुष्यों का (गणः) समूह है (सः) वह बहुत कार्य्यों को सिद्ध कर सकता है ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सम्पूर्ण स्त्रीपुरुषों को यौवनावस्थायुक्त और विद्वान् करते हैं, वे प्रशंसा करने योग्य, कल्याणकारी और दृढ़ होते हैं ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

त्वेषरथः अनेद्यः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सः) = वह (मारुतः गणः) = प्राणों का गण युवा बुराइयों को पृथक् करनेवाला व अच्छाइयों को हमारे साथ मिलानेवाला है। (त्वेषरथ:) = इस मारुत-गण से ही यह शरीर-रथ दीप्त बनता है। शरीर के एक-एक कोश को यह मारुतगण तेजोदीप्त बना देता है। (अनेद्यः) = यह अनिन्दनीय है। इन प्राणों की साधना से कोई भी निन्द्यभाव हमारे मनों में नहीं रहता । [२] यह मारुतगण (शुभंयावा) = शुभ गतिवाला है, अर्थात् प्राणसाधना से अशुभवृत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं, हमारे सब कार्य शुभ ही शुभ होते हैं। (अप्रतिष्कृतः) = यह मारुतगण शत्रुओं से अनभिगत होता है, शत्रुओं का इस पर आक्रमण नहीं होता। उपनिषदों में हम पढ़ते हैं कि असुरों ने जब प्राणों पर आक्रमण किया तो ऐसे नष्ट हो गये जैसे कि पत्थर से टकराकर मिट्टी का ढेला नष्ट हो जाता है । सो यह प्राणगण 'अप्रतिष्कुत' है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणसाधना से सब बुराइयाँ दूर होती हैं, शरीर-रथ दीप्त बनता है, जीवन अनिन्द्य होता है, सदा हम शुभ आचरणवाले बनते हैं और शत्रुओं से आक्रान्त नहीं होते।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्दम्पतीविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽनेद्यस्त्वेषरथः शुभंयावाऽप्रतिष्कुतो युवा मारुतो गणोऽस्ति स बहूनि कार्य्याणि साद्धुं शक्नोति ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युवा) प्राप्तयौवनाः (सः) (मारुतः) वायूनां समूह इव मनुष्याणां (गणः) (त्वेषरथः) त्वेषः प्रकाशवान् रथो यस्य सः (अनेद्यः) अनिन्दनीयः (शुभंयावा) यः शुभं जलं याति (अप्रतिष्कुतः) अकम्पितो दृढः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सर्वान् स्त्रीपुरुषान् यूनो विदुषः सम्पादयन्ति ते प्रशंसनीयाः कल्याणकारिणो दृढा जायन्ते ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Young, bright and bold, that group of Maruts, pioneers of humanity, riding their bright and blazing chariots, admirable beyond reproach, rises over the spatial oceans, unobstructed and unchallenged.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Something about the sermons (and their subject is told.

अन्वय:

O men! that blameless, triumphant, arrestable youthful company of the Maruts (mighty men like the winds) which goes to distant seas and is seated in blazing vehicles can accomplish many works.

भावार्थभाषाः - Those men who make all men and women energetic (youthful and enlightened), become admirable and bestowers of happiness to all.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सर्व स्त्री-पुरुषांना तरुण व विद्वान करतात ती प्रशंसा करण्यायोग्य, कल्याणकारी व दृढ असतात. ॥ १३ ॥