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के ष्ठा॑ नरः॒ श्रेष्ठ॑तमा॒ य एक॑एक आय॒य। प॒र॒मस्याः॑ परा॒वतः॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ke ṣṭhā naraḥ śreṣṭhatamā ya eka-eka āyaya | paramasyāḥ parāvataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

के। स्थ॒। न॒रः॒। श्रेष्ठ॑ऽतमाः। ये। एकः॑ऽएकः। आ॒ऽय॒य। प॒र॒मस्याः॑। प॒रा॒ऽवतः॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उन्नीस ऋचावाले एकसठवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरों से मरुदादिकों के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (श्रेष्ठतमाः) अत्यन्त कल्याण करनेवाले (नरः) नायक जनो ! (परमस्याः) अत्यन्त श्रेष्ठ के पार जानेवाले (के) कौन (स्था) ठहरें (ये) जो (परावतः) दूर से आकर उपदेश करते हैं और जिनके मध्य में (एकएकः) एकएक आप दूर देश से एक को (आयय) प्राप्त होवें ॥१॥
भावार्थभाषाः - कौन अत्यन्त श्रेष्ठ मनुष्य होते हैं? जो सर्वदा अत्यन्त श्रेष्ठ कर्म्मों को करें ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'श्रेष्ठतम' प्राण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] 'प्राण शरीर में किस प्रकार अद्भुत ढंग से कार्य करते हैं? किस प्रकार हमें उन्नतिपथ पर ले चलते हुए सर्वोच्च स्थिति में पहुँचाते हैं, द्युलोक के भी चरम - स्थान [शिखर] पर ये हमें ले जानेवाले हैं।' इस बात का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हे प्राणो ! (नरः) = उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले आप (के ष्ठा) = कौन हो? आपका स्वरूप पूरा-पूरा समझना बड़ा कठिन है। हाँ, आप (श्रेष्ठतमाः) = श्रेष्ठतम हो। सब इन्द्रियाँ थक जाती हैं। पर आप दिन-रात जागकर इस जीवनयज्ञ के प्रहरी बनते हो । सब इन्द्रियों में वस्तुतः आप की ही शक्ति काम करती है। वाणी को आप ही वसिष्ठ बनाते हैं, चक्षु में प्रतिष्ठात्व आपके कारण है, श्रोत्र की सम्पत्ति का आप ही मूल हो और प्राण को आप ही आयतन बनाते हो। [२] (ये) = जो आप (एकः एकः) = एक-एक (परमस्याः परावतः) = दूर-से-दूर लोक में हमें प्राप्त कराने के हेतु से (आयय) = आते हो। इन प्राणों की साधना से ही पृथिवी से हम अन्तरिक्ष में, अन्तरिक्ष से द्युलोक में, द्युलोक की भी चरमसीमा पर पहुँचा करते हैं। प्राणसाधना से ही हम तमस् से रजस् में, रजस् से सत्व में पहुँचते हैं। यह साधना ही हमें नित्य सत्वस्थ बनाकर अन्ततः निस्त्रैगुण्य बनाती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ–'प्राण' अद्भुत शक्ति सम्पन्न हैं। ये हमें उत्कृष्ट, उत्कृष्टतर व उत्कृष्टतम स्थिति में पहुँचाते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रश्नोत्तरैर्मरुदादिगुणानाह ॥

अन्वय:

हे श्रेष्ठतमा नरः! परमस्याः पारगन्तारः के यूयं स्था ये परावत आगत्य उपदिशन्ति येषां मध्य एकएको यूयं परावतो देशादेकमायय ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (के) (स्था) तिष्ठत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नरः) नायकाः (श्रेष्ठतमाः) अतिशयेन श्रेयस्कराः (ये) (एकएकः) (आयय) आयाथ (परमस्याः) अतिश्रेष्ठायाः [पारगन्तारः] (परावतः) दूरतः ॥१॥
भावार्थभाषाः - के श्रेष्ठतमा मनुष्या भवन्ति? ये सर्वदा श्रेष्ठतमानि कर्माणि कुर्युः ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Who are you, leaders and pioneers, best and most excellent, that come one by one and reach all together from farthest of far distances?
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of the Maruts are told by the way of questions and answers.

अन्वय:

O who are you? O leading men ! the very best, who have approached one by one from the farthest distance and experts in the subtlest science?

भावार्थभाषाः - Who are the best men ? Who always perform the best deeds?
टिप्पणी: (नरः ) णीञ् -प्रापणे । सन्मार्गं नयन्तीति नरः नायका:। - Even Prof. Maxmuller's translation proves quite clearly that they are the best men and not 'The Storm Gods' as supposes them to be in the beginning of every hymn on “Maruts (The Storm-Gods). His translation is "Who are you O Men! the very best, who have approached one by one from the farthest distance?" This is misleading.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात प्रश्न, उत्तर व वायू इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर पूर्वसूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - कोण श्रेष्ठतम पुरुष असतात? जे सदैव अत्यंत श्रेष्ठ कर्म करतात. ॥ १ ॥