ईळे॑ अ॒ग्निं स्वव॑सं॒ नमो॑भिरि॒ह प्र॑स॒त्तो वि च॑यत्कृ॒तं नः॑। रथै॑रिव॒ प्र भ॑रे वाज॒यद्भिः॑ प्रदक्षि॒णिन्म॒रुतां॒ स्तोम॑मृध्याम् ॥१॥
īḻe agniṁ svavasaṁ namobhir iha prasatto vi cayat kṛtaṁ naḥ | rathair iva pra bhare vājayadbhiḥ pradakṣiṇin marutāṁ stomam ṛdhyām ||
ईळे॑। अ॒ग्निम्। सु॒ऽअव॑सम्। नमः॑ऽभिः। इ॒ह। प्र॒ऽस॒त्तः। वि। च॒य॒त्। कृ॒तम्। नः॒। रथैः॑ऽइव। प्र। भ॒रे॒। वा॒ज॒यत्ऽभिः॑। प्र॒ऽद॒क्षि॒णित्। म॒रुता॑म्। स्तोम॑म्। ऋ॒ध्या॒म् ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
प्रभु-स्मरण-प्राणायाम
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यैः किं साधनीयमित्याह ॥
यथा प्रसत्त इहाहं नमोभिरस्मि तथा नमोभिः स्ववसमग्निमीळे कृतं वि चयत्। ये मरुतां गणा वाजयद्भी रथैरिव नोऽस्मान् वहन्ति तानहं प्र भरे प्रदक्षिणिदहं मरुतां स्तोममृध्याम् ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
What should men do is told further.
As I am glad here with the honour received from others, so I intensely desire to have the knowledge and application of Agni (fire or electricity), which gives us much protection with due respect to the teachers. I gather what I have done, (reap what I have sown), I support the band of the thoughtful men who carry us to distant places with quick-going vehicles. Turning to the right (as a mark of respect), let me multiply the praise of the thoughtful persons.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात वायू, अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
