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तमु॑ नू॒नं तवि॑षीमन्तमेषां स्तु॒षे ग॒णं मारु॑तं॒ नव्य॑सीनाम्। य आ॒श्व॑श्वा॒ अम॑व॒द्वह॑न्त उ॒तेशि॑रे अ॒मृत॑स्य स्व॒राजः॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam u nūnaṁ taviṣīmantam eṣāṁ stuṣe gaṇam mārutaṁ navyasīnām | ya āśvaśvā amavad vahanta uteśire amṛtasya svarājaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। ऊँ॒ इति॑। नू॒नम्। तवि॑षीऽमन्तम्। ए॒षा॒म्। स्तु॒षे। ग॒णम्। मारु॑तम्। नव्य॑सीनाम्। ये। आ॒शुऽअ॑श्वाः। अम॑ऽवत्। वह॑न्ते। उ॒त। ई॒शि॒रे॒। अ॒मृत॑स्य। स्व॒ऽराजः॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:58» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब आठ ऋचावाले अठ्ठावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में वायुगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अमृतस्य) नाश से रहित कारण (स्वराजः) जो कि आप प्रकाशवान् उसके सम्बन्ध में (आश्वश्वाः) शीघ्र चलनेवाले अग्नि आदि अश्व जिनके वे (ये) जो (अमवत्) गृहों को प्राप्त हों, वैसे (वहन्ते) प्राप्त होते हैं (उत) और (नव्यसीनाम्) अत्यन्त नवीन प्रजाओं के (मारुतम्) पवनसम्बन्धी (गणम्) समूह की (स्तुषे) स्तुति करने के लिये (ईशिरे) ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं (एषाम्) इन वीरों के (उ) तर्क के साथ (तविषीमन्तम्) अच्छी सेना जिसकी (तम्) उसी को (नूनम्) निश्चय प्राप्त होते हैं, वे विजयी होते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो कार्य्य और कारणस्वरूप संसार के गुण, कर्म्म और स्वभावों को जानते हैं, वे गृह के सदृश सब को सुखी कर सकते हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'तविषीमान्' मारुतगण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र में वर्णित (एषाम्) = इन शासकों के, जो (नव्यसीनाम्) = [नु स्तुतौ] के योग्य हैं इनके (तविषीमन्तम्) = दीप्तिवाले (तम्) = उस (मारुतं गणम्) = मरुद् गण को (नूनं उ) = निश्चय से (स्तुषे) = स्तुत करता हूँ। शासक वर्ग के ये लोग सचमुच प्रशंसनीय जीवनवाले हैं। शौर्य व तेजस्विता से ये दीप्त हैं। [२] (ये) = जो शासक लोग (आशु अश्वः) = शीघ्रगामी अश्वोंवाले हैं, कार्य संचालन के लिये इधर-उधर जाने के लिये जिन के पास तीव्रगामी यान विद्यमान हैं। ये शासक (अमवद्) = बलवान् होते हुए (वहन्ते) = राष्ट्रधुरा का वहन करते हैं। उत और ये शासक लोग (स्वराजः) = अपने जीवन को व्यवस्थित [regulated] करते हुए (अमृतस्य) = नीरोगता के ईशिरे ईश्वर होते हैं। स्वस्थ जीवनवाले होते हुए ये प्रजा का उत्तम शासन कर पाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- शासक गण दीप्तिवाला, शीघ्रगामी अश्वोंवाला व नियमित जीवन से नीरोगतावाला होकर राष्ट्रधुरा को सबलता से धारण करता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वायुगुणानाह ॥

अन्वय:

अमृतस्य स्वराज आश्वश्वा येऽमवद्वहन्ते उतापि नव्यसीनां मारुतं गणं स्तुष ईशिर एषामु तविषीमन्तं तं नूनं वहन्ते ते विजयिनो जायन्ते ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (उ) वितर्के (नूनम्) निश्चितम् (तविषीमन्तम्) प्रशस्ता तविषी सेना यस्य तम् (एषाम्) वीराणाम् (स्तुषे) स्तोतुम् (गणम्) समूहम् (मारुतम्) मरुतामिमम् (नव्यसीनाम्) अतिशयेन नवीनानां प्रजानाम् (ये) (आश्वश्वाः) आशुगामिनोऽग्न्यादयो अश्वा येषान्ते (अमवत्) गृहवत् (वहन्ते) प्राप्नुवन्ति (उत) अपि (ईशिरे) ऐश्वर्य्यं प्राप्नुवन्ति (अमृतस्य) नाशरहितस्य कारणस्य (स्वराजः) स्वः राजत इति स्वराट् तस्य ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये कार्य्यकारणात्मकस्य जगतो गुणकर्म्मस्वभावाञ्जानन्ति ते गृहवत्सर्वान् सुखयितुं शक्नुवन्ति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I admire the blazing, tempestuous group of these Maruts, modem self governing people who, possessed of the fastest transports and communications, move like storms, a very picture of velocity, and, shining and self- controlled, dominate over the regions of the immortals.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes or properties of the wind are told.

अन्वय:

Those persons achieve victory who acquire the knowledge of the glorious and imperishable material cause of the world (Matter) and use Agni (fire or electricity) and other rapid going articles like horses as at their home. Those who are competent to praise the band of the Maruts (wind and herves) among the people, they uphold their powerful army.

भावार्थभाषाः - Those persons can make all happy who know the merits, actions and nature of the world consisting of the cause and effect.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वान व वायूच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जे कार्यकारणरूपी जगाचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणतात ते गृहाप्रमाणे सर्वांना सुखी करू शकतात. ॥ १ ॥