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प्र व॑ ए॒ते सु॒युजो॒ याम॑न्नि॒ष्टये॒ नीची॑र॒मुष्मै॑ य॒म्य॑ ऋता॒वृधः॑। सु॒यन्तु॑भिः सर्वशा॒सैर॒भीशु॑भिः॒ क्रिवि॒र्नामा॑नि प्रव॒णे मु॑षायति ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra va ete suyujo yāmann iṣṭaye nīcīr amuṣmai yamya ṛtāvṛdhaḥ | suyantubhiḥ sarvaśāsair abhīśubhiḥ krivir nāmāni pravaṇe muṣāyati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वः॒। ए॒ते। सु॒ऽयुजः॑। याम॑न्। इ॒ष्टये॑। नीचीः॑। अ॒मुष्मै॑। य॒म्यः॑। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। सु॒यन्तु॑ऽभिः। स॒र्व॒ऽशा॒सैः। अ॒भीशु॑ऽभिः। क्रिविः॑। नामा॑नि। प्र॒व॒णे। मु॒षा॒य॒ति॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:44» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सूर्य्यसंयोग से मेघदृष्टान्त से राजगुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (क्रिविः) प्रजा का पालन करनेवाला सूर्य्य (अभीशुभिः) किरणों से (प्रवणे) नीचे स्थल में (नामानि) जलों को (प्र, मुषायति) अत्यन्त चुराता है, वैसे ही हे मनुष्यो ! जो (सुयुजः) अच्छे धर्म से युक्त होते वे (एते) राजा आदि जन (वः) आप लोगों के (इष्टये) इष्ट सुख के लिये (यामन्) मार्ग में और (अमुष्मै) परोक्ष सुख के लिये (सुयन्तुभिः) उत्तम नियन्ता जिनमें उन (सर्वशासैः) सम्पूर्ण राज्य के शासन करनेवालों से (यम्यः) न्यायकारी के लिये हितकारक (ऋतावृधः) सत्य को बढ़ानेवाली (नीचीः) नीची हुई प्रजाओं को सम्पन्न करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य सब के सुख के लिये जल को खींचता है, वैसे ही राजा न्यायमार्ग से सम्पूर्ण प्रजाओं को चलाता हुआ उत्तम विज्ञान से युक्त भृत्यों के सहित सब मनुष्यों के हित का सम्पादन करता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'क्रिविः नामानि प्रवणे मुषायति'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वः एते =) गतमन्त्र वर्णित तुम्हारे में से ये सोमरक्षक पुरुष (सुयुजः) = अच्छी प्रकार इन्द्रियाश्वों को शरीर रथ में जोतनेवाले होते हैं। (यामन्) = ये जीवनमार्ग में (इष्टये) = यज्ञों के लिये होते हैं । (अमुष्मै) = उस सोमरक्षक के लिये (नीची:) = नम्रता से युक्त (यम्यः) = संयमवाली चित्तवृत्तियाँ (ऋतावृधः) = ऋत व सत्य का वर्धन करनेवाली होती हैं। [२] (सुयन्तुभिः) = उत्तम नियमनवाली, (सर्वशासै:) = सबका शासन करनेवाली (अभीशुभिः) = लगाम रूप चित्तवृत्तियों से (क्रिविः) = सदा उत्तम कर्मों में तत्पर यह सोमी पुरुष (प्रवणे) = [modestly, humble] नम्र हृदय में (नामानि) = प्रभु के नामों को (मुषायति) = चुपके-चुपके ग्रहण करता है, बिलकुल मौनरूप से वह इन नामों का जप करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षक पुरुष इन्द्रियों व चित्तवृत्तियों को वशीभूत करके कार्यों में लगता है। वह कार्यों में प्रवृत्त हुआ हुआ चुपके-चुपके ही प्रभु के नामों का स्मरण करता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्यसंयोगतो मेघदृष्टान्तेन राजगुणानाह ॥

अन्वय:

यथा क्रिविः सूर्योऽभीशुभिः प्रवणे नामानि प्र मुषायति तथैव हे मनुष्य ! ये सुयुज एते व इष्टये यामन्नमुष्मै सुयन्तुभिः सर्वशासैर्यम्य ऋतावृधो नीचीः प्रजाः सम्पादयन्तु ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वः) युष्माकम् (एते) राजादयो जनाः (सुयुजः) ये सुष्ठु धर्मेण युञ्जते (यामन्) यामनि मार्गे (इष्टये) इष्टसुखाय (नीचीः) निम्नगताः (अमुष्मै) परोक्षाय सुखाय (यम्यः) यमाय न्यायकारिणे हिताः (ऋतावृधः) या ऋतं सत्यं वर्धयन्ति ताः (सुयन्तुभिः) सुष्ठु यन्तवो नियन्तारो येषु तैः (सर्वशासैः) ये सर्वं राज्यं शासन्ति तैः (अभीशुभिः) रश्मिभिः। अभीशव इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१.५) (क्रिविः) प्रजापालनकर्त्ता (नामानि) जलानि (प्रवणे) निम्ने देशे (मुषायति) चोरयति ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यस्सर्वसुखाय जलमाकर्षति तथैव राजा न्यायमार्गेण सर्वाः प्रजा ग्मन् सुष्ठु विज्ञानयुक्तैर्भृत्यैः सहितः सार्वजनिकहितं सम्पादयति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O children of the earth, for your good and comfort, immediate as well as distant, are these united, cooperative, well controlled radiations of the sun all round, fostering the truth of nature’s law in their own way: For that Master Spirit, the sun sucks up the vapours of water from the ocean and other lower places by well directed, all dominating waves of light, and then makes the cloud release the waters in rain showers to flow down in streams and rivers into the ocean.$(In the same way the administrative forces of the ruler, working together in cooperation within the law, collect the taxes from the various communities of the people and the ruler uses the collection for rain showers of the people’s protection, promotion and prosperity without hoarding anything for himself.)
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of a ruler are told by the illustration of the sun and the cloud.

अन्वय:

As the sun which is sustainer of the people steals (so to speak) the waters that flow in low places with its rays, in the same manner, O men ! these righteous persons who unite themselves with Dharma (righteousness) for desirable happiness and invisible joy should make even the wicked and fallen subjects the deposers of truth who help the dispenser of justice (judge or magistrate. Ed.) with the help of those who are good controllers and administrators.

भावार्थभाषाः - O men ! the sun draws water for the happiness of all, in the same manner, a ruler leading his subjects towards the path of justice, with the help of the high learned judges, thus accomplishes the good of the public.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा सूर्य सर्वांच्या सुखासाठी जल ओढून घेतो तसा राजा न्यायमार्गाने संपूर्ण प्रजेला घेऊन जातो व उत्तम विज्ञानाने युक्त सेवकांसह सर्व माणसांचे हित करतो. ॥ ४ ॥