वांछित मन्त्र चुनें

यो जा॒गार॒ तमृचः॑ कामयन्ते॒ यो जा॒गार॒ तमु॒ सामा॑नि यन्ति। यो जा॒गार॒ तम॒यं सोम॑ आह॒ तवा॒हम॑स्मि स॒ख्ये न्यो॑काः ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo jāgāra tam ṛcaḥ kāmayante yo jāgāra tam u sāmāni yanti | yo jāgāra tam ayaṁ soma āha tavāham asmi sakhye nyokāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। जा॒गार॑। तम्। ऋचः॑। का॒म॒य॒न्ते॒। यः। जा॒गार॑। तम्। ऊँ॒ इति॑। सामा॑नि। य॒न्ति॒। यः। जा॒गार॑। तम्। अ॒यम्। सोमः॑। आ॒ह॒। तव॑। अ॒हम्। अ॒स्मि॒। स॒ख्ये। निऽओ॑काः ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:44» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:14


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (जागार) अविद्यारूप निद्रा से उठ के जागनेवाला है (तम्) उसको (ऋचः) ऋचाओं के सदृश जन (कामयन्ते) कामना करते हैं और (यः) जो (जागार) अविद्यारूप निद्रा से उठ के जागनेवाला है (तम्) उसको (उ) भी (सामानि) सामवेद के विभाग (यन्ति) प्राप्त होते हैं और (यः) जो (जागार) अविद्यारूप निद्रा से उठके जागनेवाला (तम्) उसको (अयम्) यह (सोमः) सोमलता आदि ओषधियों का समूह वा ऐश्वर्य्य के सदृश (न्योकाः) निश्चित स्थानवाला (सख्ये) मित्रत्व में (तव) आपका (अहम्) मैं (अस्मि) हूँ, इस प्रकार (आह) कहता है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो वेदविद्या को प्राप्त होने की इच्छा करते हैं, उनको ही वेदविद्या प्राप्त होती और जो मनुष्य आदिकों के साथ मित्रता करता है, वह बहुत सुख को प्राप्त होता है ॥१४॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यो जागर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः जागार) = जो गतमन्त्र के अनुसार इन ज्ञान की वाणियों के अध्ययन में 'न स्वपन्' न प्रमाद करता हुआ सदा जागरित होता है, सदा सावधान [जागरूक] होता है, (तम्) = उसको (ऋचः) = सब विज्ञान की वाणियाँ (कामयन्ते) = चाहती हैं, वही सब विज्ञानों को प्राप्त करता है । (यः जागार) = जो जागता है, (तं उ) = उसको ही (सामानि यन्ति) = सब उपासनाएँ प्राप्त होती हैं [सामवेद - उपासना वेद], अर्थात् जागरूक होकर अपने कर्त्तव्य कर्मों को करनेवाला व्यक्ति ही सच्चा उपासक होता है। [२] (यः जागार) = जो जागता है (तम्) = उसे (अयं सोमः) = ये शान्त प्रभु (आह) = कहते हैं कि (अहम्) = मैं (तव सख्ये) = तेरी मित्रता में (न्योकाः) = निश्चित निवासवाला हूँ। आलसी के प्रभु मित्र नहीं होते।
भावार्थभाषाः - भावार्थ– जागरूकता में ही विज्ञान की प्राप्ति है, इसी में सच्ची उपासना है। जागरूक के ही प्रभु मित्र होते हैं।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यो जागार तमृच इव जनाः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति यो जागार तमयं सोम इव न्योकाः सख्ये तवाहमस्मीत्याह ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (जागार) अविद्यानिद्राया उत्थाय जागर्ति (तम्) (ऋचः) ऋच्छ्रुतयः (कामयन्ते) (यः) (जागार) (तम्) (उ) (सामानि) सामविभागाः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (यः) (जागार) (तम्) (अयम्) (सोमः) सोमलताद्योषधिगण ऐश्वर्य्यं वा (आह) वदति (तव) (अहम्) (अस्मि) (सख्ये) मित्रत्वे (न्योकाः) निश्चितस्थानः ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये वेदविद्यां प्राप्तुमिच्छन्ति तानेव वेदविद्या प्राप्नोति यो मनुष्यादिभिः सह मैत्रीमाचरति स बहुसुखं लभते ॥१४॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Whoever is awake, the Rks love and bless. Whoever is alert, the Samans move and elevate. Whoever is active without a wink of sleep, this soma of life’s joy and ecstasy addresses and says: O seeker and yajaka, I am for you, a friend and shelter home.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject of enlightened persons is further explained.

अन्वय:

One who is awake from the sleep of ignorance, men studying (the hymns or the Riks of Rigveda) desire him. He who is awake, to him the hymns of the Samaveda come or reveal. (He gets their knowledge being alert and wakeful). The group of Soma and other creepers or wealth come to him who is thus awake and says I am certainly in your friendship.

भावार्थभाषाः - The Vedic knowledge is attained only by those, who desire to acquire that knowledge. He who keeps friendship with good men and other living beings, enjoys much happiness.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वेदविद्या प्राप्त करण्याची इच्छा बाळगतात त्यांनाच वेदविद्या प्राप्त होते व जो माणसांबरोबर मैत्री करतो तो खूप सुखी होतो. ॥ १४ ॥