आ धे॒नवः॒ पय॑सा॒ तूर्ण्य॑र्था॒ अम॑र्धन्ती॒रुप॑ नो यन्तु॒ मध्वा॑। म॒हो रा॒ये बृ॑ह॒तीः स॒प्त विप्रो॑ मयो॒भुवो॑ जरि॒ता जो॑हवीति ॥१॥
ā dhenavaḥ payasā tūrṇyarthā amardhantīr upa no yantu madhvā | maho rāye bṛhatīḥ sapta vipro mayobhuvo jaritā johavīti ||
आ। धे॒नवः॑। पय॑सा। तूर्णि॑ऽअर्थाः। अम॑र्धन्तीः। उप॑। नः॒। य॒न्तु॒। मध्वा॑। म॒हः। रा॒ये। बृ॒ह॒तीः। स॒प्त। विप्रः॑। म॒यः॒ऽभुवः॑। ज॒रि॒ता। जो॒ह॒वी॒ति॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सत्रह ऋचावाले तेंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के विषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
ज्ञान धेनुएँ
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! यो जरिता विप्रो महो राये सप्त बृहतीर्गिरो जोहवीति तत्प्रेरिता मध्वा पयसा सहाऽमर्धन्तीस्तूर्ण्यर्था मयोभुवो धेनवो न उपायन्तु ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The duties of the enlightened persons are told.
O men ! may the great speeches of seven kinds come to us, which a very wise man and admirer of all sciences teaches well for the sake of prosperity. Prompted by him, let them come to us like the cows full of sweet milk, doing no harm, quick moving and joy-diffusing.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात संपूर्ण विद्वानांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
