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म॒रुत्व॑तो॒ अप्र॑तीतस्य जि॒ष्णोरजू॑र्यतः॒ प्र ब्र॑वामा कृ॒तानि॑। न ते॒ पूर्वे॑ मघव॒न्नाप॑रासो॒ न वी॒र्यं१॒॑ नूत॑नः॒ कश्च॒नाप॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

marutvato apratītasya jiṣṇor ajūryataḥ pra bravāmā kṛtāni | na te pūrve maghavan nāparāso na vīryaṁ nūtanaḥ kaś canāpa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒रुत्व॑तः। अप्र॑तिऽइतस्य। जि॒ष्णोः। अजू॑र्यतः। प्र। ब्र॒वा॒म॒। कृ॒तानि॑। न। ते॒। पूर्वे॑। म॒घ॒ऽव॒न्। न। अप॑रासः। न। वी॒र्य॑म्। नूत॑नः। कः। च॒न। आ॒प॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:42» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) अत्यन्त श्रेष्ठ धन से युक्त और अत्यन्त विद्यावाले विद्वान् वा अतिबलवान् राजन् ! (मरुत्वतः) प्रशंसित विद्वानों से युक्त (अप्रतीतस्य) प्रतीति के अविषय (अजूर्य्यतः) जिसको जीर्ण अवस्था नहीं प्राप्त हुई ऐसे (जिष्णोः) जीतनेवाले (ते) आपके जिन (कृतानि) कृत्यों का हम लोग (प्र, ब्रवामा) उपदेश देवें उनको (न) न (पूर्वे) प्राचीनजन (न) न (अपरासः) पीछे से हुए जन व्याप्त होते हैं और (नूतनः) नवीन (कः, चन) कोई भी, आपके (वीर्य्यम्) पराक्रम को (न) नहीं (आप) व्याप्त होता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को चाहिये कि उन्हीं प्रशंसित कर्मवालों के कृत्यों को अन्य जनों के लिये उपदेश देवें, जिनके कर्म अप्रतिहत अर्थात् नष्ट नहीं होते हैं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'अद्वितीय प्रभु' का स्मरण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (मरुत्वतः) = [मरुतः प्राणा:] सब प्राणों की शक्ति के स्वामी, (अप्रतीतस्य) = कभी भी शत्रुओं से अनाक्रान्त, (जिष्णो:) = सदा जयशील, (अजूर्यतः) = कभी जीर्ण न होनेवाले, हे प्रभो ! आपके (कृतानि) = लोक निर्माण आदि कार्यों का (प्रब्रवाम) = हम सदा परिपादन करें। आपके इन महान् कार्यों का स्मरण करते हुए हम आपकी महिमा को सर्वत्र देखने का प्रयत्न करें और आपके प्रति श्रद्धान्वित हो आपका उपासन करें। [२] हे (मघवन्) = परमैश्वर्यशालिन् (न) = न तो (पूर्वे) = पूर्वकालीन सृष्टि में होनेवाले कोई व्यक्ति (न अपरास:) = नां ही इस अपर सृष्टि में होनेवाले कोई व्यक्ति (न) = नां ही (नूतनः कश्चन) = आगे आनेवाली सृष्टियों में होनेवाला नया कोई व्यक्ति (ते वीर्यं आप) = आपके पराक्रम को पा सकता है। अर्थात् आपके समान पराक्रमवाला न कोई हुआ, न है और न होगा।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के कर्म महान् हैं। वे अनुपम पराक्रमवाले हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मघवन्नतुलविद्य विद्वन्नतिबल राजन् वा ! मरुत्वतोऽप्रतीतस्याऽजूर्य्यतो जिष्णोस्ते तव यानि कृतानि वयं प्र ब्रवामा तानि न पूर्वे नापरासो व्याप्नुवन्ति तथा नूतनः कश्चन तव वीर्य्यं नाप ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुत्वतः) प्रशंसितविद्वद्युक्तस्य (अप्रतीतस्य) प्रतीत्यविषयस्य (जिष्णोः) जयशीलस्य (अजूर्य्यतः) अप्राप्तजीर्णावस्थस्य (प्र) (ब्रवामा) उपदिशेम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कृतानि) अनुष्ठितानि (न) (ते) तव (पूर्वे) प्राचीनाः (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त (न) (अपरासः) पश्चाद्भूताः (न) (वीर्य्यम्) पराक्रमं बलम् (नूतनः) (कः) (चन) अपि (आप) व्याप्नोति ॥६॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिस्तेषामेव प्रशंसितकर्म्मणां कृत्यान्यन्येभ्य उपदेश्यानि येषामप्रतिहतानि सन्ति ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We sing and celebrate the acts and achievements of the lord of men and winds, incomprehensible, victorious, unaging and undecaying. O lord of honour and power, Indra, neither the ancients, nor the moderns, nor the succeeding ones nor anyone else would comprehend your power and potential.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of the enlightened persons are told.

अन्वय:

O king ! you are endowed with unparalleled knowledge and strength, your works are accompanied by the admirable great scholars, are unrecoiled, victorious and undecaying (not old). We proclaim to the people, that neither their predecessors nor successors have equaled your powers, nor anyone new has attained it.

भावार्थभाषाः - The enlightened persons should preach to the people about the actions of those meritorious men whose works are unparalleled and unconquered by enemies.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांचे कर्म अखंड चालू असते. त्याच प्रशंसित कर्म करणाऱ्यांच्या कृत्यांचा विद्वानांनी इतर लोकांना उपदेश करावा. ॥ ६ ॥