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उ॒तो नो॑ अ॒स्य कस्य॑ चि॒द्दक्ष॑स्य॒ तव॑ वृत्रहन्। अ॒स्मभ्यं॑ नृ॒म्णमा भ॑रा॒स्मभ्यं॑ नृमणस्यसे ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uto no asya kasya cid dakṣasya tava vṛtrahan | asmabhyaṁ nṛmṇam ā bharāsmabhyaṁ nṛmaṇasyase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒तो इति॑। नः॒। अ॒स्य। कस्य॑। चि॒त्। दक्ष॑स्य। तव॑। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। अ॒स्मभ्य॑म्। नृ॒म्णम्। आ। भ॒र॒। अ॒स्मभ्य॑म्। नृ॒ऽम॒न॒स्य॒से॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:38» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) जैसे सूर्य्य मेघ का नाश करता है, उसके सदृश वर्तमान (तव) आपका और (नः) हम लोगों के (उतो) भी (अस्य) इसके (कस्य) किसके (चित्) भी (दक्षस्य) बलसम्बन्धी (नृमणस्यसे) अपने धन की इच्छा करते हो वह आप (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (नृम्णम्) मनुष्य रमते हैं जिसमें उस धन का (आ, भर) धारण कीजिये और (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये अभय दीजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - वही श्रेष्ठ मनुष्यों में मुख्य हो, जो राज्य के रक्षण में तत्पर होकर वर्त्ताव करे ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दक्ष-नृम्ण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वृत्रहन्) = वासना को विनष्ट करनेवाले प्रभो ! (उतो) = और (नः) = हमारे लिये (अस्य) = इस (कस्यचित्) = अनिर्देश्य, शब्दों से पूरा-पूरा वर्णन न करने योग्य (तव) = आपके (दक्षस्य) = बल का (आभर) = भरण कीजिये। आपकी उपासना के द्वारा वासनाओं से ऊपर उठकर हम उन्नति के साधनभूत बल को प्राप्त करें। [२] (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये आप (नृम्णम्) = बल व धन को (आभर) = भरिये। आप (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये सदा ही (नृमणस्यसे) = धन व बल को देने की कामना करते हैं। आपके इस नृम्ण को पाने के लिये हम पात्र बनें ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमारी वासनाओं को विनष्ट करके हमें बल व धन को प्राप्त करायें ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वृत्रहन् ! तव नोऽस्माकमुतो अस्य कस्यचिद्दक्षस्य नृमणस्यसे स त्वमस्मभ्यं नृम्णमा भरास्मभ्यमभयं देहि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उतो) अपि (नः) अस्माकम् (अस्य) (कस्य) (चित्) अपि (दक्षस्य) (तव) (वृत्रहन्) यथा सूर्य्यो वृत्रं हन्ति तद्वद्वर्त्तमान (अस्मभ्यम्) (नृम्णम्) नरो रमन्ते यस्मिँस्तद्धनम् (आ) भर (अस्मभ्यम्) (नृमणस्यसे) आत्मनो नृम्णमिच्छसि ॥४॥
भावार्थभाषाः - स एव नरोत्तमः स्याद्यो राष्ट्रस्य रक्षणे तत्परो भूत्वा वर्तेत ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, O lord destroyer of darkness, want and suffering, bring that human wealth of values, honour and excellence which is worthy of anyone here, there and everywhere in terms of efficiency of your divine order. Give us the power and freedom from fear, since you love us and wish us to rise and prosper.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject of king's duties is dealt

अन्वय:

O king ! like the sun you are destroyer of the clouds. Bring to us the wealth of a powerful men whatsoever, give us fearless, as you are disposed or committed to enrich us.

भावार्थभाषाः - He is the best among men, who is always engaged in protecting the State.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थर् - जो राज्याचे रक्षण करण्यात तत्पर, तोच नरोत्तम असतो. ॥ ४ ॥