वांछित मन्त्र चुनें

एकं॒ नु त्वा॒ सत्प॑तिं॒ पाञ्च॑जन्यं जा॒तं शृ॑णोमि य॒शसं॒ जने॑षु। तं मे॑ जगृभ्र आ॒शसो॒ नवि॑ष्ठं दो॒षा वस्तो॒र्हव॑मानास॒ इन्द्र॑म् ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ekaṁ nu tvā satpatim pāñcajanyaṁ jātaṁ śṛṇomi yaśasaṁ janeṣu | tam me jagṛbhra āśaso naviṣṭhaṁ doṣā vastor havamānāsa indram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

एक॑म्। नु। त्वा॒। सत्ऽप॑तिम्। पाञ्च॑ऽजन्यम्। जा॒तम्। शृ॒णो॒मि॒। य॒शस॑म्। जने॑षु। तम्। मे॒। ज॒गृ॒भ्रे॒। आ॒ऽशसः॑। नवि॑ष्ठम्। दो॒षा। वस्तोः॑। हव॑मानासः। इन्द्र॑म् ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:32» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:11


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! किया है अड़तालीस वर्ष ब्रह्मचर्य्य जिसने ऐसे (एकम्) द्वितीय सहाय से रहित (सत्पतिम्) श्रेष्ठों के पालन करनेवाले (पाञ्चजन्यम्) प्राण आदि पाँच पवन बलवान् जिसके उसके पुत्र और (जनेषु) मनुष्यों में (जातम्) प्रसिद्ध और (यशसम्) यशस्वी (त्वा) आपको (शृणोमि) सुनती हूँ (तम्) उन (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त (नविष्ठम्) अत्यन्त नवीन (मे) मेरे स्वामी की (हवमानासः) ग्रहण करने की इच्छा करते और (आशसः) मनोरथ की इच्छा करते हुए जन (दोषा) रात्रियों और (वस्तोः) दिन का (नु) शीघ्र (जगृभ्रे) ग्रहण करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचर्य्य को वेदोक्त समयानुसार धारण किये हुई कन्या प्रसिद्ध जिसका यश ऐसे श्रेष्ठ पुरुष, उत्तम स्वभाववाले और उत्तम गुण और रूप से युक्त, प्रीति करनेवाले स्वामी के अर्थात् पति के ग्रहण करने की इच्छा करे, वैसे ही ब्रह्मचारी भी अपने सदृश ही जो ब्रह्मचारिणी स्त्री उसका ग्रहण करे ॥११॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिन-रात प्रभु का स्मरण

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे प्रभो ! (त्वा) = आपको मैं (जनेषु) = शक्तियों का विकास करनेवाले लोगों में (जातम्) = प्रादुर्भूत हुआ-हुआ (शृणोमि) = सुनता हूँ । वस्तुतः उन लोगों में अमुक-अमुक शक्ति आपके प्रादुर्भाव के कारण ही होती है। मैं आपको (नु) = निश्चय से (एकम्) = अद्वितीय - अनुपम सुनता हूँ। आपकी किसी से उपमा नहीं दी जा सकती। (सत्पतिम्) = आप सज्जनों के रक्षक हैं। (पाञ्चजन्यम्) = पञ्चजनों का हित करनेवाले हैं— 'ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र व निषाद' सभी का आप भला करते हैं। (यशसम्) = सम्पूर्ण यश आपका ही है। २. (मे) = मेरी (आशसः) = कामनाएँ (नविष्ठम्) = अत्यन्त स्तुत्य (तम्) = उस प्रभु को ही (जगृभ्रे) = ग्रहण करें। (दोषावस्तोः) = दिन-रात (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही (हवमानास:) = हम पुकारनेवाले हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ही सर्वश्रेष्ठ हैं। हम प्रभु को ही चाहें - प्रभु को ही दिन-रात पुकारें, अर्थात् प्रभुस्मरण करके ही सब कार्यों को करें ।
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसः ! कृताष्टाचत्वारिंशद् ब्रह्मचर्य्यमेकं सत्पतिं पाञ्चजन्यं जनेषु जातं यशसं त्वा त्वां शृणोमि तमिन्द्रं नविष्ठं मे स्वामिनं हवमानास आशसो जना दोषा वस्तोर्नु जगृभ्रे ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एकम्) असहायम् (नु) सद्यः (त्वा) त्वाम् (सत्पतिम्) सतां पालकम् (पाञ्चजन्यम्) पञ्चजनाः प्राणा बलवन्तो यस्य तदपत्यम् (जातम्) प्रसिद्धम् (शृणोमि) (यशसम्) यशस्विनम् (जनेषु) (तम्) (मे) मम (जगृभ्रे) गृह्णन्तु (आशसः) काममिच्छन्तः (नविष्ठम्) अतिशयेन नवम् (दोषा) रात्रीः (वस्तोः) दिनम् (हवमानासः) आदातुमिच्छन्तः (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचारिणी प्रसिद्धकीर्तिं सत्पुरुषं सुशीलं शुभगुणरूपसमन्वितं प्रीतिमन्तं पतिं ग्रहीतुमिच्छेत्तथैव ब्रह्मचार्य्यपि स्वसदृशीमेव ब्रह्मचारिणीं स्त्रियं गृह्णीयात् ॥११॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I hear you, feel your vibrations manifested among the people: One and only one self-existent and self-refulgent lord and protector in truth, guardian of all the five people, commanding divine excellence and majesty. I hope and pray that my people, hoping and loving, self sacrificing day and night, may attain to the latest manifestations of Indra and his newest gifts of excellence.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The same subject of learned persons still continues.

अन्वय:

O learned persons! I hear of your reputation as one who has observed Brahmacharya for forty eight years, is chief among the man, the protector of the good, the son of a person who has five powerful Pranas (vital breaths), and is renowned and glorious. Let all people who desire to obtain great prosperity, and desire the welfare of all may take day and night by my energetic husbands endowed with wealth and noble virtues, as their guide and helper.

भावार्थभाषाः - A Brahmacharini should always desire to have a person as husband, who is renowned, glorious, a man of good character and conduct, and endowed with good virtues, beauty and love. In the same miner, a Brahmchari should also have his wife who is a Brahmacharini of similar nature, and to a very virtuous virgin.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचर्य पालन करणाऱ्या कन्येने कीर्तिमान, श्रेष्ठ, उत्तम स्वभाव, गुण व रूप असलेल्या, प्रेम करणाऱ्या पतीचा स्वीकार करण्याची इच्छा धरावी तसेच ब्रह्मचाऱ्यानेही आपल्यासारख्याच ब्रह्मचारिणी स्त्रीचे ग्रहण करावे. ॥ ११ ॥