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कु॒मा॒रं मा॒ता यु॑व॒तिः समु॑ब्धं॒ गुहा॑ बिभर्ति॒ न द॑दाति पि॒त्रे। अनी॑कमस्य॒ न मि॒नज्जना॑सः पु॒रः प॑श्यन्ति॒ निहि॑तमर॒तौ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kumāram mātā yuvatiḥ samubdhaṁ guhā bibharti na dadāti pitre | anīkam asya na minaj janāsaḥ puraḥ paśyanti nihitam aratau ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कु॒मा॒रम्। मा॒ता। यु॒व॒तिः। सम्ऽउ॑ब्धम्। गुहा॑। बि॒भ॒र्ति॒। न॒। द॒दा॒ति॒। पि॒त्रे। अनी॑कम्। अ॒स्य॒। न। मि॒नत्। जना॑सः। पु॒रः। प॒श्य॒न्ति॒। निऽहि॑तम्। अ॒र॒तौ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:2» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बारह ऋचावाले द्वितीय सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में युवावस्था में विवाह करने के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (युवतिः) पूर्ण अवस्था अर्थात् विवाह करने योग्य अवस्थावाली होकर जिस स्त्री ने विवाह किया ऐसी (माता) माता (समुब्धम्) तुल्यता से ढपे हुए (कुमारम्) कुमार को (गुहा) गर्भाशय में (बिभर्ति) धारण करती और (पित्रे) उस पुत्र के पिता के लिये (न) नहीं (ददाति) देती है (अस्य) इस पिता के (अनीकम्) समुदायबल को अर्थात् (न) जो नहीं (मिनत्) नाश करनेवाला होता हुआ (अरतौ) रमणसमय से अन्यसमय में (निहितम्) स्थित उसको (जनासः) विद्वान् जन (पुरः) पहिले (पश्यन्ति) देखते हैं, वैसा ही आप लोग आचरण करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो कुमार और कुमारी ब्रह्मचर्य्य से विद्या पढ़के और सन्तान के उत्पन्न करने की रीति को जान के पूर्ण अवस्था अर्थात् विवाह करने के योग्य अवस्था होने पर स्वयंवर नामक विवाह को करके सन्तान की उत्पत्ति करते हैं तो वे सदा आनन्दित होते हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

युवति माता

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रस्तुत मन्त्र में 'वेदज्ञान' ही 'माता' है 'स्तुता मया वरदा वेदमाता'। यह दोषों को दूर करके गुणों का मिश्रण करने के कारण 'युवति' है । जीव 'कुमार' है, [कु] बुराई को मारनेवाला । यह (युवतिः माता) = कभी जीर्ण व मृत न होनेवाला 'देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति' जीवन का निर्माण करनेवाला [माता] वेदज्ञान (कुमारम्) = बुराई को नष्ट करनेवाले इस जीव को, (समुब्धम्) = जिसे कि ज्ञान से अच्छी प्रकार भरा गया है [उम् to fill with], (गुहा बिभर्ति) = अपने अन्दर धारण करती है या बुद्धिरूप गुहा में स्थापित करती है। (पित्रे न ददाति) = प्रभु रूप पिता के लिये नहीं दे डालती, अर्थात् यह जीव सदा प्रभु का ही जप नहीं करता रहता, ज्ञान प्राप्ति आदि निर्विष्ट कर्मों को करनेवाला बनता है। वस्तुतः ज्ञान प्राप्ति आदि कर्मों में लगना प्रभु की दृश्य भक्ति है, केवल नाम को जपते रहना उसकी श्रव्य भक्ति है। वेदमाता हमें दृश्यभक्ति में प्रेरित करती है, केवल श्रव्य भक्ति से बचाती है। [२] इस प्रकार यह वेदमाता (अस्य अनीकम्) = इसके बल को (न मिनत्) = नष्ट नहीं होने देती। इस प्रकार ज्ञान व शक्ति के परिपाक से (जनासः) = लोग इस कुमार को (पुरः) = अपने सामने (अरतौ निहितम्) = [अ-रतौ] विषय-वासनाओं के प्रति अरुचि में स्थापित हुआ-हुआ (पश्यन्ति) = देखते हैं। सब लोग अनुभव करते हैं कि वेदज्ञान ने इसे विषय-वासनाओं की आसक्ति से ऊपर उठा दिया है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वेदमाता हमारे जीवन को सर्वांग सुन्दर बनाती है। यह वेदमाता का पुत्र केवल नाम ही नहीं जानता रहता। इसका बल हिंसित नहीं होता और यह विषयों के प्रति रुचिवाला नहीं होता।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ युवावस्थायां विवाहविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा युवतिर्माता समुब्धं कुमारं गुहा बिभर्ति पित्रे न ददात्यस्यानीकं न मिनदरतौ निहितं जनासः पुरः पश्यन्ति तथैव यूयमाचरत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कुमारम्) (माता) (युवतिः) पूर्णावस्था सती कृतविवाहा (समुब्धम्) समत्वेन गूढम् (गुहा) गुहायां गर्भाशये (बिभर्ति) (न) (ददाति) (पित्रे) जनकाय (अनीकम्) बलं सैन्यम् (अस्य) (न) निषेधे (मिनत्) हिंसत् (जनासः) विद्वांसः (पुरः) (पश्यन्ति) (निहितम्) स्थितम् (अरतौ) अरमणवेलायाम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - यदि कुमाराः कुमार्यश्च ब्रह्मचर्य्येण विद्यामधीत्य सन्तानोत्पत्तिं विज्ञाय पूर्णायां युवावस्थायां स्वयंवरं विवाहं कृत्वा सन्तानोत्पत्तिं कुर्वन्ति तर्हि ते सदाऽऽनन्दिता भवन्ति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The youthful mother bears and supports the foetus concealed in the womb, she does not, cannot, give it to the father in the state of immaturity. People cannot hurt its strength and vitality hidden in secret. But when it is born, they see its beauty and vitality before their eyes.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The benefits of marriage in young age is emphasized.

अन्वय:

O men ! as a fully young married mother cherishes her well-protected and conceived child in the womb and does not give it on to its father, though she does not minimize the importance of the father. When the child is born after the completion of the period of pregnancy, the father beholds the child only thereafter. You should also do like that.

भावार्थभाषाः - If boys and girls after the study of all sciences observe Brahmacharya, and having acquired the knowledge of the science of procreating the children, in accordance with the Svayamvara systems (self-choice). They give father the children, and caress and always enjoy bliss.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात युवावस्थेत विवाह व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - भावार्थ -जर युवक व युवतींनी ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या शिकून संतानोत्पत्तीसाठी युवावस्थेत स्वयंवर विवाह केल्यास संतानोत्पत्तीमुळे ते सदैव आनंदित राहतात. ॥ १ ॥