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प्रि॒यं दु॒ग्धं न काम्य॒मजा॑मि जा॒म्योः सचा॑। घ॒र्मो न वाज॑जठ॒रोऽद॑ब्धः॒ शश्व॑तो॒ दभः॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

priyaṁ dugdhaṁ na kāmyam ajāmi jāmyoḥ sacā | gharmo na vājajaṭharo dabdhaḥ śaśvato dabhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रि॒यम्। दुग्धम्। न। काम्य॑म्। अजा॑मि। जा॒म्योः। सचा॑। घ॒र्मः। न। वाज॑ऽजठरः। अद॑ब्धः। शश्व॑तः। दभः॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:19» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजजठरः) क्षुधा का वेग उदर में जिससे हो (अदब्धः) जो नहीं हिंसा करने योग्य (शश्वतः) निरन्तर व्याप्त (दभः) और जिससे नाश करता है उस (घर्मः) प्रताप के (न) सदृश वा (प्रियम्) प्रिय (दुग्धम्) दुग्ध के (न) सदृश (सचा) सम्बन्ध से (जाम्योः) खाने योग्य अन्न को देनेवाले प्रकाश और पृथिवी के (काम्यम्) कामना करने योग्य पदार्थ को (अजामि) प्राप्त होता हूँ, इससे मेरे साथ आप लोग भी इसको करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सूर्य्य के प्रकाश के सदृश विद्या से व्याप्त, दुग्ध के सदृश प्रिय वचनवाले और धर्म्म की कामना करते हुए जन हैं, वे पृथ्वी के सदृश सब के रक्षक होते हैं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

माता-पिता के निरीक्षण में

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (जाम्योः सचा) = जन्म देनेवाले माता-पिता के साथ उनके सम्पर्क में रहता हुआ मैं (प्रियम्) = प्रीणित करनेवाले (दुग्धं न) = दुग्ध के समान (काम्यम्) = चाहने योग्य ज्ञान को (अजामि) = प्राप्त होता हूँ [अज गतौ] । माता-पिता ने निरीक्षण में रहनेवाला सन्तान अवाञ्छनीय बातों को नहीं सीखता। वह कमनीय ज्ञान को ही प्राप्त करता है । [२] (घर्मः न) = यह [ sunshine] सूर्य के प्रकाश के समान होता है, ज्ञान से चमकता है। (वाजजठरः) = शक्ति को अपने जठर में लिये हुए होता है, शक्तिशाली होता है । (अदब्धः) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं से हिंसित नहीं होता। (शश्वतः) = प्लुतगतिवाला होता है तथा (दभः) = शत्रुओं का हिंसक होता है। वस्तुतः यह निरन्तर क्रियाशीलता ही इसे शत्रुओं का संहार करने में समर्थ करती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- माता-पिता के निरीक्षण में रहनेवाला सन्तान उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त करता है, प्रशस्त जीवनवाला होता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

वाजजठरोऽदब्धः शश्वतो दभो घर्मो न प्रियं दुग्धं न सचा जाम्योः काम्यमजामि तेन मया सह यूयमप्येदं कुरुत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रियम्) (दुग्धम्) (न) इव (काम्यम्) कमनीयम् (अजामि) प्राप्नोमि (जाम्योः) अत्तव्यान्नप्रदयोर्द्यावापृथिव्योः (सचा) सम्बन्धेन (घर्मः) प्रतापः (न) इव (वाजजठरः) वाजो क्षुद्वेगो जठरे यस्मात्सः (अदब्धः) अहिंसनीयः (शश्वतः) निरन्तरोऽव्याप्तः (दभः) दभ्नाति हिनस्ति येन सः ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये सूर्य्यप्रकाशवद् व्याप्तविद्या दुग्धवत्प्रियवचसो धर्मं कामयमाना जनास्सन्ति ते भूमिवत्सर्वेषां रक्षका भवन्ति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Friend and associate of heaven and earth, intrepidable, eternal, dynamic, like the vital fire of the body which assimilates all it receives for energy, I, living fire of existence, receive and assimilate all I love as delicious milk and remain unconquered.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

For teachings the enlightened persons are described.

अन्वय:

I have good appetite of a healthy person, am inviolable, and engaged in good actions. Ceaselessly like the destructive force or dear like the milk. I attain whatever is desirable on the earth and heaven because they produce or contain food materials. You should also do the same with me.

भावार्थभाषाः - There is a simile used in the mantra. Those men are the protectors of all. like the earth who pervade (are knowers of ) all sciences. As the sun light is dear to all like the milk, the followers of Dharma (righteousness) are also liked.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्यप्रकाशाप्रमाणे विद्यावान, दुधाप्रमाणे मधुर वचनी व धर्माची कामना करणारे लोक असतात ते पृथ्वीप्रमाणे रक्षक असतात. ॥ ४ ॥