अर्च॑न्तस्त्वा हवाम॒हेऽर्च॑न्तः॒ समि॑धीमहि। अग्ने॒ अर्च॑न्त ऊ॒तये॑ ॥१॥
arcantas tvā havāmahe rcantaḥ sam idhīmahi | agne arcanta ūtaye ||
अर्च॑न्तः। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒। अर्च॑न्तः। सम्। इ॒धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। अर्च॑न्तः। ऊ॒तये॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले तेरहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निपदवाच्य विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
अर्चना के तीन लाभ
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निपदवाच्यविद्वद्गुणानाह ॥
हे अग्ने ! वयमूतये त्वार्चन्तो हवामहे त्वामर्चन्तः समिधीमहि त्वामर्चन्तो विपश्चितो भवेम ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The attributes of the enlightened persons (Agnis) are told.
O learned leader ! we accept you (as leader) for our protection and advancement, honoring you. Let us illumines the world well, honoring you. Let us become great scholars by revering you.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
