जन॑स्य गो॒पा अ॑जनिष्ट॒ जागृ॑विर॒ग्निः सु॒दक्षः॑ सुवि॒ताय॒ नव्य॑से। घृ॒तप्र॑तीको बृह॒ता दि॑वि॒स्पृशा॑ द्यु॒मद्वि भा॑ति भर॒तेभ्यः॒ शुचिः॑ ॥१॥
janasya gopā ajaniṣṭa jāgṛvir agniḥ sudakṣaḥ suvitāya navyase | ghṛtapratīko bṛhatā divispṛśā dyumad vi bhāti bharatebhyaḥ śuciḥ ||
जन॑स्य। गो॒पाः। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। जागृ॑विः। अ॒ग्निः। सु॒ऽदक्षः॑। सु॒वि॒ताय॑। नव्य॑से। घृ॒तऽप्र॑तीकः। बृ॒ह॒ता। दि॒वि॒ऽस्पृशा॑। द्यु॒ऽमत्। वि। भा॒ति॒। भ॒र॒तेभ्यः॑। शु॒चिः॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले ग्याहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के गुणों का उपदेश करते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
जनस्य गोपा
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निगुणानाह ॥
हे मनुष्या! यो जनस्य गोपा जागृविः सुदक्षो घृतप्रतीकः शुचिरग्निर्बृहता दिविस्पृशा नव्यसे सुवितायाजनिष्ट भरतेभ्यो द्युमद्विभाति तं यथावद्विजानीत ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The attributes of Agni (fire) are told.
O men ! you should know well about the fire (energy) which is protector of the people, is ever awake, giver of much strength, and enkindled by the oblations of ghee and which is pure. It is manifested for the acquisition of new prosperity with great light (of knowledge). It shines brilliantly for the upholders and supporters of the people.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी व विद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसुक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
