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त्वं नो॑ अग्न एषां॒ गयं॑ पु॒ष्टिं च॑ वर्धय। ये स्तोमे॑भिः॒ प्र सू॒रयो॒ नरो॑ म॒घान्या॑न॒शुः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no agna eṣāṁ gayam puṣṭiṁ ca vardhaya | ye stomebhiḥ pra sūrayo naro maghāny ānaśuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। ए॒षा॒म्। गय॑म्। पु॒ष्टिम्। च॒। व॒र्ध॒य॒। ये। स्तोमे॑भिः। प्र। सू॒रयः॑। नरः॑। म॒घानि॑। आ॒न॒शुः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:10» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (ये) जो (नरः) नायक (सूरयः) विद्वान् जन (स्तोमेभिः) वेद में वर्त्तमान स्तुति के प्रकरणों से (मघानि) धनों को (प्र, आनशुः) प्राप्त होवें, उनके साथ (त्वम्) आप (नः) हम लोगों और (एषाम्) इनके (गयम्) सन्तान तथा गृह वा धन (च) और (पुष्टिम्) पुष्टि को (वर्धय) वृद्धि कीजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को चाहिये कि यथार्थवक्ताओं के सहित सब मनुष्यों के सुख और बल को बढ़ावें ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गय-पुष्टं-मघ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (त्वम्) = आप (एषां नः) = इन हमारे (गयम्) = प्राणों को (च) = व (पुष्टिम्) = धनादि के पोषण को (वर्धय) = बढ़ाइये । प्रभु कृपा से ही प्राणशक्ति व धन की वृद्धि होती है। [२] (ये) = जो (सूरयः नरः) = ज्ञानी पुरुष हैं वे (स्तोमेभिः) = स्तुतियों के द्वारा (मघानि) = ऐश्वर्यों को (प्र आनशुः) = प्रकर्षेण व्याप्त करते हैं। प्रभु का स्तवन करते हुए ये ज्ञानी वास्तविक ऐश्वर्यों को, अध्यात्म-सम्पत्ति को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु-स्तवन करते हुए 'प्राणशक्ति, धनपुष्टि व अध्यात्म ऐश्वर्य' को प्राप्त करें।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ये नरः सूरयः स्तोमेभिर्मघानि प्रानशुस्तैः सह त्वं न एषां गयं च पुष्टिं च वर्धय ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) विद्वन् (एषाम्) (गयम्) अपत्यं गृहं च। गय इत्यपत्यनामसु पठितम्। (निघं०२.२)। धननामसु पठितम्। (निघं०२.१) गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (पुष्टिम्) (च) (वर्धय) (ये) (स्तोमेभिः) वेदस्थैः प्रकरणैः स्तोत्रैः (प्र) (सूरयः) विपश्चितः (नरः) नेतारः (मघानि) मघानि धनानि (आनशुः) प्राप्नुयुः ॥३॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिराप्तैः सहितैः सर्वेषां मनुष्याणां सुखं बलं च वर्द्ध्येत ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - For us, Agni, lord of light and knowledge, increase and exalt the health and home of these, men of vision and splendour, sages, scholars, teachers, leaders and all, bright and brave who, with songs of praise and prayer, have come to attain the honour and excellence of existence.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of the enlightened persons are stated

अन्वय:

O learned person ! with the association of those leading enlightened men who have acquired wealth with the compliance of tannest relevant contained in the Vedic mantras, increase their progeny, wealth or home and their strength.

भावार्थभाषाः - Absolutely truthful enlightened persons should intensify the happiness and strength of all.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी आप्तविद्वानांसह सर्व माणसांचे सुख व बल वाढवावे. ॥ ३ ॥