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परि॑ ते दू॒ळभो॒ रथो॒ऽस्माँ अ॑श्नोतु वि॒श्वतः॑। येन॒ रक्ष॑सि दा॒शुषः॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari te dūḻabho ratho smām̐ aśnotu viśvataḥ | yena rakṣasi dāśuṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑। ते॒। दुः॒ऽदभः॑। रथः॑। अ॒स्मान्। अ॒श्नो॒तु। वि॒श्वतः॑। येन॒। रक्ष॑सि। दा॒शुषः॑॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:9» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:8 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! आप (येन) जिससे (दाशुषः) विद्या आदि के दान करनेवालों की (परि) सब प्रकार (रक्षसि) रक्षा करते हो वह (ते) आप का (दूळभः) दुःख से नाश करने योग्य (रथः) सुन्दर वाहन (अस्मान्) हम लोगों को (विश्वतः) सब प्रकार (अश्नोतु) प्राप्त हो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जिन साधनों और दृढ़ राजसेना के अङ्गों से प्रजा का सब प्रकार रक्षण होवे, वे ही हम लोगों से भी प्राप्त करने योग्य हैं ॥८॥ इस सूक्त में अग्नि, राजा, प्रजा और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥८॥ यह नवम सूक्त और नवम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अहिंसित शरीर-रथ

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो ! (ते) = आपका वह (दूडभः) = हिंसित न होनेवाला (रथः) = शरीर-रथ (अस्मान्) = हमें (विश्वत:) = सब ओर से (परि अश्नोतु) = व्याप्त करनेवाला हो। हमें वह शरीर-रथ प्राप्त हो जो कि रोगों व वासनाओं से हिंसित नहीं होता । [२] यह शरीर-रथ वह है (येन) = जिससे (दाशुषः रक्षसि) = हे प्रभो ! आप दाश्वान् का रक्षण करते हैं, जो भी प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता है, प्रभु से वह उत्तम शरीर-रथ प्राप्त कराते हुआ अपना रक्षण कर पाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- उपासक को प्रभु रोगों व वासनाओं से हिंसित न होनेवाला शरीर रथ प्राप्त कराते अगले सूक्त में भी 'अग्नि' नाम से प्रभु का आराधन करते हैं -
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजंस्त्वं येन दाशुषः परिरक्षसि स ते दूळभो रथोऽस्मान् विश्वतोऽश्नोतु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परि) सर्वतः (ते) तव (दूळभः) दुःखेन हिंसितुं योग्यः (रथः) रमणीयं यानम् (अस्मान्) (अश्नोतु) प्राप्नोतु (विश्वतः) सर्वतः (येन) (रक्षसि) (दाशुषः) विद्यादिदानकर्तॄन् ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यैस्साधनै राजसेनाङ्गैर्दृढैः प्रजायाः सर्वतो रक्षणं भवेत् तान्येवास्माभिरपि प्रापणीयानीति ॥८॥ अत्राग्निराजप्रजाविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥८॥ इति नवमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, ruler of the world, may that rare invincible chariot of your power by which you protect the generous givers in yajna, we pray, be directed to us and promote us all round.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties towards the people are told.

अन्वय:

O King! let your inviolable charming car or vehicle whereby you protect the givers of knowledge etc., be always at our disposal around us.

भावार्थभाषाः - O King! let us also get all the means and powerful wings of the army by which the people can be protected from all sides.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! ज्या साधनांनी व दृढ राजसेनेच्या अंगांनी प्रजेचे सर्व प्रकारे दृढ रक्षण होईल तेच आमच्याकडूनही प्राप्त करण्यायोग्य आहे. ॥ ८ ॥