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वेषि॒ ह्य॑ध्वरीय॒तामु॑पव॒क्ता जना॑नाम्। ह॒व्या च॒ मानु॑षाणाम् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

veṣi hy adhvarīyatām upavaktā janānām | havyā ca mānuṣāṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वेषि॑। हि। अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम्। उ॒प॒ऽव॒क्ता। जना॑नाम्। ह॒व्या। च॒। मानु॑षाणाम्॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:9» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जिससे आप (अध्वरीयताम्) अपने को अहिंसारूप यज्ञ करनेवाले (मानुषाणाम्) मनुष्यों में उत्पन्न (जनानाम्) प्रसिद्ध पुरुषों को (उपवक्ता) उपदेश देनेवालों के भी उपदेशक हुए (हि) ही (हव्या) देने योग्य वस्तुओं को (च) भी (वेषि) प्राप्त होते हो, इससे उपदेश करने के योग्य हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो उपदेश देनेवाले लोग धर्म्म के उपदेश देनेवालों को उत्पन्न करते और उत्तम प्रकार शिक्षित और उपदेश देने के लिये प्रवृत्त करके मनुष्यों को बोध कराते हैं, वे ही संसार के कल्याण करनेवाले होते हैं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु के प्रिय कौन ?

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्रभो! आप (अध्वरीयताम्) = यज्ञों की कामनावाले पुरुषों की (वेषि) = कामना करते हैं । ये पुरुष ही आपको प्रिय होते हैं। आप (जनानाम्) = [जनी प्रादुर्भावे] अपनी शक्तियों के विकास में लगे हुए पुरुषों के (उपवक्ता) = हृदयस्थ होकर समीप से ज्ञानोपदेश करनेवाले हैं, मार्ग दिखानेवाले हैं। [२] (च) = और आप ही (मानुषाणाम्) = विचारशील पुरुषों के हव्या हव्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाले हैं। हे प्रभो ! आप से प्राप्त हव्य पदार्थों का ही सेवन करते हुए ये अपने मानव जीवन को सफल कर पाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु ही हमारे हृदयस्थ होकर ज्ञानोपदेश देते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यतस्त्वमध्वरीयतां मानुषाणां जनानामुपवक्ता सन् हि हव्या च वेषि तस्मादुपदेशं कर्तुमर्हसि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वेषि) व्याप्नोषि (हि) (अध्वरीयताम्) य आत्मनोऽध्वरमहिंसायज्ञं कर्त्तुमिच्छन्ति तेषाम् (उपवक्ता) उपदेशकानामुपदेशकः (जनानाम्) प्रसिद्धानाम् (हव्या) दातुमर्हाणि (च) (मानुषाणाम्) मानुषेषु भवानाम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - य उपदेष्टारो धर्मोपदेशकाञ्जनयन्ति सुशिक्षितान् कृत्वोपदेशाय प्रेष्य मनुष्यान् बोधयन्ति ते हि जगत्कल्याणकारका भवन्ति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - You are the guide of the performers of yajna and teacher of the people in general, and you receive the respect and yajnic gifts and fragrances offered by humanity.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The subject of enlightened persons is underlined.

अन्वय:

O learned person! you are the right man to deliver the things worth-giving's, for those reputed persons who desire to have non-violent sacrifices and pervade (know).

भावार्थभाषाः - The preachers are benefactors of the world. They train other preachers of Dharma and after training further, send them to enlighten people.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे उपदेशक, धार्मिक उपदेशकांना निर्माण करतात. उत्तम प्रकारे शिक्षित होण्यासाठी व उपदेश देण्यासाठी प्रवृत्त करतात व माणसांना बोध करवितात ते जगाचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ५ ॥