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स मानु॑षीषु दू॒ळभो॑ वि॒क्षु प्रा॒वीरम॑र्त्यः। दू॒तो विश्वे॑षां भुवत् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa mānuṣīṣu dūḻabho vikṣu prāvīr amartyaḥ | dūto viśveṣām bhuvat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। मानु॑षीषु। दुः॒ऽदभः॑। वि॒क्षु। प्र॒ऽअ॒वीः। अम॑र्त्यः। दूतः। विश्वे॑षाम्। भु॒व॒त्॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:9» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (मानुषीषु) मनुष्यसंबन्धी (विक्षु) प्रजाओं में (विश्वेषाम्) सब की (प्रावीः) उत्तम विद्या में व्याप्त (अमर्त्यः) मर्त्य के स्वभाव से रहित (दूतः) सम्पूर्ण विद्याओं का प्राप्त करानेवाला (भुवत्) होता है (सः) वह इस संसार में (दूळभः) दुर्लभ है, ऐसा जानना चाहिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग सब लोगों के सुखसाधक विद्या के देनेवाले और मनुष्यों को धर्म के आचरण में प्रवेश करानेवाले स्वयं धार्मिक होवें, वे संसार में दुर्लभ हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'दूडभ' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र के अनुसार प्रभु पूजन करता हुआ देवयु बनकर मैं प्रभु को अपने हृदयासन पर बिठाता हूँ। उस समय (सः) = वे प्रभु (मानुषीषु विक्षु) = इन मानव प्रजाओं में (दूडभ:) = हिंसित होनेवाला नहीं होता। काम-क्रोध आदि राक्षसीभाव प्रभु पर आक्रमण नहीं कर पाते। जब हम प्रभु को अपने हृदय में निवास कराते हैं तो प्रभु की ज्ञानाग्नि में भस्म होने के भय से 'काम' वहाँ आता ही नहीं। इस प्रकार वे प्रभु प्रजाओं में (प्रावीः) प्रकर्षेण प्राप्त होनेवाले होते हैं, (अमर्त्यः) = उनको मृत्यु व पापों से बचाते हैं, उनको विषयों के पीछे मरनेवाला नहीं होने देते। [२] ये प्रभु (विश्वेषाम्) = सब उपासकों के (दूतः) = ज्ञान-सन्देश को प्राप्त करानेवाले होते हैं। प्रभु से ज्ञान को प्राप्त करके ये अपने जीवन को उत्तम बना पाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ– हृदयस्थ प्रभु हमें काम-क्रोध आदि का शिकार नहीं होने देते। हमें ज्ञान का सन्देश देते हैं ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो मानुषीषु विक्षु विश्वेषां प्रावीरमर्त्यो दूतो भुवत्स इह दूळभोऽस्तीति वेद्यम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) विद्वान् (मानुषीषु) मनुष्याणामिमासु (दूळभः) दुःखेन लब्धुं योग्यः (विक्षु) प्रजासु (प्रावीः) प्रकृष्टविद्याव्यापी (अमर्त्यः) मर्त्यस्वभावरहितः (दूतः) उपक्षेता सर्वविद्याप्रापकः (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (भुवत्) ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसस्सर्वेषां सुखसाधका विद्याप्रदा मनुष्याणां धर्म्माऽऽचरणे प्रवेशकाः स्वयं धार्मिकाः स्युस्ते जगति दुर्ल्लभाः सन्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - He is rare among the human people of the world who is kind, protective, pioneer, exceptional and immortal giver of light and knowledge. May this power be the destroyer of the suffering of entire humanity.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The subject of Agni is strengthened.

अन्वय:

O men ! rare is a man who is well versed in all sciences, (divine fire from the defects of ordinary men) and conveyor of all knowledge.

भावार्थभाषाः - Rare are the men in the world, who are the accomplishers of the happiness of all, givers of knowledge, and lead men to righteous conduct and live righteously themselves.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान सर्व लोकांना सुख देणारे, विद्या देणारे व माणसांना धर्माच्या आचरणात प्रवृत्त करविणारे असून स्वतः धार्मिक असतात ते लोक जगात दुर्लभ असतात. ॥ २ ॥