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ते स्या॑म॒ ये अ॒ग्नये॑ ददा॒शुर्ह॒व्यदा॑तिभिः। य ईं॒ पुष्य॑न्त इन्ध॒ते ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te syāma ye agnaye dadāśur havyadātibhiḥ | ya īm puṣyanta indhate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। स्या॒म॒। ये। अ॒ग्नये॑। द॒दा॒शुः। ह॒व्यदा॑तिऽभिः। ये। ई॒म्। पुष्य॑न्तः। इ॒न्ध॒ते॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:8» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि विद्या के जाननेवाले विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (हव्यदातिभिः) देने योग्य वस्तुओं के दानों से (अग्नये) अग्निविद्या की प्राप्ति के लिये (ददाशुः) द्रव्य आदि पदार्थ देते हैं और (ये) जो लोग (ईम्) जल को (पुष्यन्तः) पुष्ट करते हुए (इन्धते) प्रकाशित होते हैं (ते) वे सुखी हैं, उनके साथ हम लोग सुखी (स्याम) होवें ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों की विद्या की प्राप्ति के लिये बहुत खर्चते हैं, वे सब से सब प्रकार सब सुखों से पुष्ट हुए आनन्दित होते हैं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यज्ञ व प्रभु की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गतमन्त्र के अनुसार प्रभु से ज्ञान के सन्देश को सुनकर हम (ते) = वे (स्याम) = हों, (ये) = जो (अग्नये) = अग्नि के लिये (हव्यदातिभिः) = हव्य पदार्थों के देने के द्वारा (ददाशुः) = अपना अर्पण करनेवाले होते हैं। यज्ञों में हव्य पदार्थों की आहुति देते हुए ये लोग यज्ञमय जीवनवाले बन जाते हैं। [२] हम वे बनें (ये) = जो (ईम्) = निश्चय से (पुष्यन्तः) = इन यज्ञों से अपना पोषण करते हुए [अपने प्रसविष्यध्वमेष वोऽसिवष्टकामधुक्] (इन्धते) = अपने हृदयों में उस प्रभु को समिद्ध करते हैं। यज्ञों से स्वार्थ वृत्ति विनष्ट होती है और हमें प्रभु का दर्शन होता है। स्वार्थ ही एक ऐसा आवरण है, जो हमें प्रभु दर्शन से वञ्चित करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- यज्ञमय जीवनवाले बनकर हम अपना पोषण करें और हृदयदेश में प्रभु को समिद्ध करें।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निविद्याविद्विषयमाह ॥

अन्वय:

ये हव्यदातिभिरग्नये ददाशुर्य ईं पुष्यन्त इन्धते ते सुखिनः सन्ति तैस्सह वयं सुखिनस्स्याम ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (स्याम) भवेम (ये) (अग्नये) अग्निविद्याप्राप्तये (ददाशुः) द्रव्यादिकं ददति (हव्यदातिभिः) दातव्यदानैः (ये) (ईम्) उदकम् (पुष्यन्तः) (इन्धते) प्रदीप्यन्ते ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या अग्न्यादिपदार्थविद्याप्राप्तये पुष्कलं धनं वियन्ति ते सर्वतः सर्वथा सर्वैः सुखैः पुष्टाः सन्त आनन्दन्ति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let us dedicate ourselves to you, Agni, like those who, with liberal offers of havi, give themselves unto you in devotion for the gifts and powers of universal energy, light the fire and make the streams of the waters of life flow free across the globe.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

More about the energy scientists.

अन्वय:

The persons enjoy happiness who give away much wealth with various kinds of gifts for the science of the Agni thorough studies. They shine on earth by strengthening or purifying the water. Let us also enjoy happiness, living in the company of such great scientists.

भावार्थभाषाः - The persons spend much money for acquiring the knowledge of Agni (fire, electricity etc.) water and other things. They attain happiness from all sides and enjoy bliss.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या विद्याप्राप्तीसाठी पुष्कळ धन खर्च करतात ती सर्व सुखाने युक्त बनून पुष्ट होतात व आनंदित होतात. ॥ ५ ॥