दू॒तं वो॑ वि॒श्ववे॑दसं हव्य॒वाह॒मम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठमृञ्जसे गि॒रा ॥१॥
dūtaṁ vo viśvavedasaṁ havyavāham amartyam | yajiṣṭham ṛñjase girā ||
दू॒तम्। वः॒। वि॒श्वऽवे॑दसम्। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। अम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठम्। ऋ॒ञ्ज॒से॒। गि॒रा॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले आठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निविषय को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
सम्पत्ति व विपत्ति की परीक्षा
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निविषयमाह ॥
हे मनुष्याः ! वो यं दूतमिव वर्तमानममर्त्यं विश्ववेदसं यजिष्ठं हव्यवाहं गिरा वयं विजानीमः। हे विद्वन् ! येन त्वं कार्य्याण्यृञ्जसे तं यूयं विज्ञाय सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The attributes of Agni are told.
O man! know well and utilize for various purposes the Agni (energy) which is like your messenger, present in all things, imperishable. conveyor of many desirable things, and unifier. May we know it and tell about it to others in our talks, and with it (Agni) you also accomplish many targets.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
