क्षेत्र॑स्य॒ पति॑ना व॒यं हि॒तेने॑व जयामसि। गामश्वं॑ पोषयि॒त्न्वा स नो॑ मृळाती॒दृशे॑ ॥१॥
kṣetrasya patinā vayaṁ hiteneva jayāmasi | gām aśvam poṣayitnv ā sa no mṛḻātīdṛśe ||
क्षेत्र॑स्य। पति॑ना। व॒यम्। हि॒तेन॑ऽइव। ज॒या॒म॒सि॒। गाम्। अश्व॑म्। पो॒ष॒यि॒त्नु। आ। सः। नः॒। मृ॒ळा॒ति॒। ई॒दृशे॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले सत्तावनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में कृषिकर्म को कहते हैं ॥
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
क्षेत्रपति प्रभु
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ कृषिकर्माह ॥
हे मनुष्या ! येन क्षेत्रस्य पतिना सहिता वयं हितेनेव गामश्वं पोषयित्नु द्रव्यं जयामसि स क्षेत्रपतिरीदृशे न आ मृळाति सुखयेत् ॥१॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The subject of agriculture is narrated.
With the help of lord (master) of the farmland like the loyal army serves our interest, we win the land and the food that nourishes our cows and horses. May be you secure way, and make us always happy.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)x
