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पु॒ना॒ने त॒न्वा॑ मि॒थः स्वेन॒ दक्षे॑ण राजथः। ऊ॒ह्याथे॑ स॒नादृ॒तम् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

punāne tanvā mithaḥ svena dakṣeṇa rājathaḥ | ūhyāthe sanād ṛtam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पु॒ना॒ने इति॑। त॒न्वा॑। मि॒थः। स्वेन॑। दक्षे॑ण। रा॒ज॒थः॒। ऊ॒ह्याथे॒ इति॑। स॒नात्। ऋ॒तम् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:56» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:8» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो शिल्पविद्या के पढ़ाने और पढ़नेवाले (स्वेन) अपने (दक्षेण) बलयुक्त (तन्वा) शरीर से (पुनाने) पवित्र करनेवाली सूर्य और पृथिवी को जान के (मिथः) परस्पर (राजथः) शोभित होते हैं और (सनात्) सनातन से (ऋतम्) सत्य का (ऊह्याथे) ऊहापोह करते हैं, वे सत्कार के योग्य होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो शिल्पविद्या में निपुण होते हैं, उनका सत्कार यथायोग्य राजा आदि को करना चाहिये ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ऋतमय जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] ये द्यावापृथिवी-मस्तिष्क व शरीर (मिथ:) = परस्पर (तन्वा) = शक्ति के विस्तार के साथ (पुनाने) = एक-दूसरे को पवित्र करते हुए [शरीर स्वस्थ हो तो मस्तिष्क स्वस्थ लगता है। मस्तिष्क स्वस्थ हो तो शरीर स्वस्थ होता है] (स्वेन) = अपने (दक्षेण) = बल से (राजथ:) = दीप्त होते हैं। मस्तिष्क ज्ञान से चमकता है, तो शरीर शक्ति से दीप्त है। [२] ये मस्तिष्क और शरीर (सनाद्) = सदा से (ऋतम्) = यज्ञ का जो भी ठीक है, उसका (ऊह्याथे) = वहन करते हैं। मस्तिष्क व शरीर के ठीक होने से जीवन ऋतमय बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- मस्तिष्क व शरीर एक दूसरे की शक्ति का वर्धन करते हुए जीवन को ऋतमय बनाते हैं।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यौ शिल्पविद्यापकाऽध्येतारौ स्वेन दक्षेण तन्वा पुनाने विदित्वा मिथो राजथः सनाद् ऋतमूह्याथे तौ सत्कर्त्तव्यौ भवथः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पुनाने) पवित्रकारिके (तन्वा) शरीरेण (मिथः) परस्परम् (स्वेन) स्वकीयेन (दक्षेण) बलयुक्तेन (राजथः) (ऊह्याथे) वितर्कयथः (सनात्) सनातनात् (ऋतम्) सत्यम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये शिल्पविद्यायां निपुणा जायन्ते तेषां सत्कारो यथायोग्यं राजादिभिः कर्त्तव्यः ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Divine and pure heaven and earth, together in body with your innate power and potential, you shine in glory and observe the laws of eternal truth in existence.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The some subject of technology is narrated.

अन्वय:

The teachers and students of the technical science know with their strong body and mind about the purifying sun and earth. They shine and mutually ponder over the Primordial matter and its effect (the world, which is true or real). They should be duly honored.

भावार्थभाषाः - Those who become experts in technology, should be duly respected and honored by king and others.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे शिल्पविद्येमध्ये निपुण असतात, राजाने त्यांचा यथायोग्य सत्कार करावा. ॥ ६ ॥