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दे॒वेभ्यो॒ हि प्र॑थ॒मं य॒ज्ञिये॑भ्योऽमृत॒त्वं सु॒वसि॑ भा॒गमु॑त्त॒मम्। आदिद्दा॒मानं॑ सवित॒र्व्यू॑र्णुषेऽनूची॒ना जी॑वि॒ता मानु॑षेभ्यः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

devebhyo hi prathamaṁ yajñiyebhyo mṛtatvaṁ suvasi bhāgam uttamam | ād id dāmānaṁ savitar vy ūrṇuṣe nūcīnā jīvitā mānuṣebhyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वे॒भ्यः॑। हि। प्र॒थ॒मम्। य॒ज्ञिये॑भ्यः। अ॒मृ॒त॒ऽत्वम्। सु॒वसि॑। भा॒गम्। उ॒त्ऽत॒मम्। आत्। इत्। दा॒मान॑म्। स॒वि॒तः॒। वि। ऊ॒र्णु॒षे॒। अ॒नू॒ची॒ना। जी॒वि॒ता। मानु॑षेभ्यः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:54» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सवितः) सम्पूर्ण संसार के उत्पन्न करनेवाले जगदीश्वर ! (हि) जिससे आप (यज्ञियेभ्यः) सत्यभाषण आदि यज्ञानुष्ठान करनेवाले (देवेभ्यः) श्रेष्ठ गुण, कर्म्म और स्वभावयुक्त जीवों के लिये (प्रथमम्) पहिले (भागम्) भजने योग्य (उत्तमम्) श्रेष्ठ (अमृतत्वम्) मोक्षसुख की (सुवसि) प्रेरणा करते हो (आत्) इसके अनन्तर (दामानम्) दाता जन को (वि, ऊर्णुषे) अपनी व्याप्ति से ढाँपते हो (अनूचीना) अनुचर (जीविता) जीवनों को (इत्) ही (मानुषेभ्यः) मनुष्यों के लिये देते हो, इससे हम लोगों को उपासना करने योग्य हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो परमात्मा सत्य आचरण में प्रेरणा करता और मुक्तिसुख को देकर सब को आनन्दित करता है, उसी की सदा उपासना करो ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सुन्दर जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सवितः) = सर्वोत्पादक, सर्वैश्वर्यवाले प्रभो! आप (हि) = निश्चय से (यज्ञियेभ्यः देवेभ्यः) = यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहनेवाले देवों के लिए (अमृतत्वम्) = अमृतत्व को-नीरोगता को (सुवसि) = प्राप्त कराते हैं। आप इनके लिए (उत्तमं भागम्) = उत्कृष्ट भजनीय धन को प्राप्त कराते हैं। [२] हे सवितः ! (आत् इत्) = आप शीघ्र ही (दामानम्) = दान की वृत्तिवाले पुरुष को (व्यूर्णुषे) = प्रकाशमय जीवनवाला करते हैं। आप (मानुषेभ्यः) = विचारशील पुरुषों के लिए (अनूचीना) = [ अनु अञ्च] अनुक्रम से चलनेवाले (जीविता) = जीवनों को प्रकाशित करते हैं, अर्थात् इनके जीवन को बड़ा व्यवस्थित व नियमित बनाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ– यज्ञादि कर्मों में लगे रहने पर नीरोगता व धन प्राप्त होता है। दानशील पुरुष का जीवन प्रकाशमय बनता है। विचारशील पुरुष का जीवन बड़ा व्यवस्थित होता है ।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरगुणानाह ॥

अन्वय:

हे सवितर्जगदुत्पादक ! हि त्वं यज्ञियेभ्यो देवेभ्यः प्रथमं भागमुत्तमममृतत्वं सुवस्याद् दामानं व्यूर्णुषेऽनूचीना जीवितेन्मानुषेभ्यो ददासि तस्मादस्माभिरुपास्योऽसि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (देवेभ्यः) दिव्यगुणकर्मस्वभावेभ्यो जीवेभ्यः (हि) यतः (प्रथमम्) आदौ (यज्ञियेभ्यः) सत्यभाषणादियज्ञानुष्ठातृभ्यः (अमृतत्वम्) मोक्षसुखम् (सुवसि) प्रेरयसि (भागम्) भजनीयम् (उत्तमम्) (आत्) आनन्तर्य्ये (इत्) (दामानम्) दातारम् (सवितः) सकलजगदुत्पादक जगदीश्वर (वि) (ऊर्णुषे) स्वव्याप्त्याऽऽच्छादयसि (अनूचीना) यान्यनुचरन्ति तानि (जीविता) जीवितानि (मानुषेभ्यः) ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः परमात्मा सत्याचारे प्रेरयति मुक्तिसुखं प्रदाय सर्वानानन्दयति तमेव सदोपाध्वम् ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Savita, lord creator of life, you alone first of all create and inspire the immortal bliss of freedom, the highest gift of divinity for mankind, awarded to the devotees of yajna and divine worship, and then you alone reveal yourself and open up the treasures of divine gifts for the generous people followed by children who keep up the family tradition of piety.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The attributes of God are told further.

अन्वय:

O Savita (Creator of the world) ! you confer upon the souls, virtues endowed with divine merits, actions and temperaments and are performers of the Yajnas along with always speaking truth etc., the most desirable and sublime joy of emancipation at first. Those who gives himself up to you, you cover him from all sides by Your pervasion. You give most imitable (ideal) lives to thoughtful men. Therefore, you are worthy of adoration by all of us.

भावार्थभाषाः - O men ! adore only that One God, Who prompts us to truthful acts and fills all with bliss by giving the joy of emancipation.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो परमात्मा सत्याचरणात प्रेरणा करतो व मुक्तिसुख देतो, सर्वांना आनंदित करतो, त्याचीच सदैव उपासना करा. ॥ २ ॥